शुनियाछि साधुमुखे
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शुनियाछि साधुमुखे
शुनियाछि साधुमुखे बले सर्वजन।
श्रीरूप कृपाय मिले युगल चरण ।।१।।
हा! हा! प्रभु सनातन गौर-परिवार।
सबे मिलि'वाञ्छा पूर्ण करह आमार ।। २।।
श्रीरूपेर कृपा येन आमा-प्रति हय।
से पढ़ आश्रय याँर सेइ महाशय ।।३।।
प्रभु लोकनाथ कबे सङ्गे लइया याबे।
श्रीरूपेर पादपद्ये मोरे समर्पिबे ।।४।।
हेन कि हुइबे मोर-नर्म सखीगणे।
अनुगत नरोत्तमे करिबे शासने ।।५।।
अनुवाद
।।१।। मैंने साधुओं के श्रीमुख से सुना है कि श्रीरूप गोस्वामी की कृपा से ही श्रीश्री राधाकृष्ण के चरणकमलों की प्राप्ति होती है।
।। २।। हे श्रील सनातन गोस्वामी एवं गौरांग महाप्रभु के पार्षदवृन्द! आप सब मिलकर मुझपर कृपा करें ताकि मेरी अभिलाषा पूर्ण हो।
।।३।। श्रील रूप गोस्वामी की कृपा मुझपर हो जाए तथा जिन्होंने भी उनकी शरण ग्रहण की है वे मेरे स्वामी हैं।
।।४।। वह दिन कब आयेगा जब श्रील लोकनाथ गोस्वामी मुझे अपने साथ ले जाकर श्री रूप गोस्वामी के चरणों में समर्पित कर देंगे।
।।५।। नरोत्तम दास ठाकुर अभिलाषा करते हैं कि कब श्रीराधाजी की नर्मसखियाँ मुझे अपने अनुगत जानकर मुझपर शासन करेंगी।