श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु जीवे दया करि

श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु जीवे दया करि

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श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु जीवे दया करि।

श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु जीवे दया करि।

स्व-पार्षद स्वीय धाम सह अवतरि ।।१।।

अत्यन्त दुर्लभ प्रेम करिबारे दान।।

शिखाय शरणागति भकतेर प्राण ।।२।।

दैन्य, आत्मनिवेदन गोतृत्वे वरण।

अवश्य रक्षिबे कृष्ण-विश्वास, पालन ।।३।।

भक्ति-अनुकूल-मात्र कार्येर स्वीकार।

भक्ति-प्रतिकूल-भाव वर्जन-अंगीकार ।।४।।

षडंग शरणागति हइबे याँहार।

ताँहार प्रार्थना शुने श्री-नन्द-कुमार ।।५।।

अनुवाद

।।१।। पतित जीवात्माओं पर दयावश, भगवान श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु इस संसार में । अपने पार्षदों एवं निज धाम सहित अवतीर्ण हुए ।

।।२।। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने अत्यन्त दुर्लभ कृष्णप्रेम का दान दिया तथा उन्होंने शरणागति के सिद्धांत सिखाए, जो कि भक्तों के जीवन एवं प्राण हैं ।

।।३।। & ।।४।। शरणागति के सिद्धांत हैं - विनम्रता, कृष्ण के प्रति आत्म-समर्पण, कृष्ण को अपना पालनकर्ता स्वीकार करना, यह दृढ विश्वास होना कि कृष्ण अवश्य ही रक्षा करेंगे, उन कार्यों को स्वीकार करना जो कृष्ण भक्ति के अनुकुल हों तथा उन कार्यों को त्यागना जो कृष्ण भक्ति के प्रतिकूल हों ।

।।५।। कृष्ण, जो कि नन्द महाराज के पुत्र हैं, उन लोगों की प्रार्थनाएँ सुनते हैं जिन्होंने शरणागति के इन छः सिद्धांतों को आत्मसात् कर लिया है ।

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