राधे! जय जय माधव दयिते

राधे! जय जय माधव दयिते

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राधे! जय जय

राधे! जय जय माधव दयिते ।

गोकुल-तरुणी मण्डल-महिते ।।१।।

दामोदर-रतिवर्धन-वेशे ।

हरिनिष्कुट- वृन्दाविपिनेशे ।।२।।

वृषभानुदधि - नवशशिलेखे ।

ललिता सखीगण रमित विशाखे ।।३।।

करुणां कुरु मयि करुणा भरिते ।

सनक सनातन-वर्णित चरिते ।।४।।

१. हे श्रीमती राधारानी! हे माधव की प्रिया! गोकुल की समस्त तरुण गोपियों द्वारा वंदित हे देवी, आपकी जय हो, आपकी जय हो!

२. आप ऐसे वेश धारण करती हैं जो भगवान् दामोदर के प्रेम को बढ़ाते हैं। आप भगवान् श्रीहरि को आनन्द प्रदान करने वाले वृन्दावन धाम की महारानी हैं।

३. आप वह नवचन्द्र-स्वरूपा हैं जो महाराज वृषभानु रूपी सागर से उदित हुआ है। हे ललिता की सखी! आपके दिव्य गुण विशाखा को आनन्द प्रदान करते हैं।

४. हे परम करुणामयी देवी! सनक, सनातन आदि आपके दिव्य चरित्र का वर्णन करते हैं। हे परम दयालु राधारानी! कृपया मुझपर दया कीजिए।

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