प्रभु तव पद-युगे
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प्रभु तव पद-युगे
प्रभु तव पद-युगे मोर निवेदन ।
नाहि मागि देहसुख, विद्या, धन, जन ।।१।।
नाहि मागि स्वर्ग, आर मोक्ष नाहि मागि ।
ना कोरि प्रार्थना कोनो विभूतीर लागि ।।२।।
निजकर्म-गुणदोषे जे जे जन्म पाय ।।
जन्मे जन्मे जेनो तव नामगुण गाय ।।३।।
एइ मात्र आशा मम तोमार चरणे ।
अहैतुकी भक्ति हृदे जागे अनुक्षणे ।।४।।
विषये जे प्रीती एबे आछये आमार ।
सेइ-मत प्रीती हौक चरणे तोमार ।।५।।
विपदे सम्पदे ताँहा ठाकुक सम-भावे ।
दिने दिने वृद्धि हौक नामेर प्रभावे ।।६।।
पशु-पक्षी ह ये ठाकि स्वर्गे वा निरये ।
तव भक्ति रहु भक्तिविनोद-हृदये ।।७।।
अनुवाद
।।१।। हे प्रभु ! आपके श्रीचरणों में मेरा यह निवेदन है कि मुझे शारीरिक सुख, जडविद्या, धनसम्पत्ति तथा जन (पुत्र, पत्नी आदि बन्धुबान्धव) नहीं चाहिए ।
।।२।। और न स्वर्गसुख, मोक्ष (मुक्ति) तथा योग विभूति (आठ प्रकारकी सिद्धियाँ) ही चाहिए ।
।।३।। हे प्रभु! अपने कर्मों के गुण एवं दोषों के अनुसार अर्थात् सत्कर्म या दुष्कर्मों के परिणाम स्वरूप मैं जिस किसी भी उत्तम या निष्कृष्ट योनि में जाउँ, मेरी एकमात्र यही इच्छा है कि आपकी कृपासे मैं उन-उन योनियों में भी आपका गुणगान करता रहूँ ।
।।४।। आपके श्रीचरणों में मेरी यही एकमात्र आशा है कि मेरे हृदय में आपकी अहैतुकी भक्ति उदित हो जाय ।
।।५।। हे प्रभु ! विषयों में मेरी जैसी आसक्ति है, वैसी ही आसक्ति आपके श्रीचरणकमलों में हो जाय।
।। ६।। जो दुःख अथवा सुख में भी एक समान रहे तथा नामके प्रभावसे दिन-प्रतिदिन बढती ही रहे पशु-पक्षी हये थाकि स्वर्गे वा निरये ।।
।। ७।। पदकर्ता भक्तिविनोद ठाकुर दीनतापूर्वक कह रहे है-हे प्रभु ! मैं चाहे पशुपक्षी आदिका शरीर प्राप्तकर स्वर्ग में रहूँ अथवा नरक में, आप मुझपर इतनी कृपा करना कि मेरे हृदय में। आपकी भक्ति नित्यकाल विद्यमान रहे।