परम करुणा

परम करुणा


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परम करुणा

परम करुणा, पहुँ दुइजन,

निताई गौरचन्द्र।

सब अवतार, सार-शिरोमणि,

केवल आनन्द-कन्द।।१।।

भज भज भाई, चैतन्य-निताई,

सुदृढ़ विश्वास करि'।

विषय छाड़िया, से रसे मजिया,

मुखे बोलो हरि हरि।।२।।

देख ओरे भाई, त्रिभुवने नाइ,

एमन दयाल दाता।

पशु पक्षी झुरे, पाषाण विदरे,

शुनि' यार गुणगाथा ।।३।।

संसारे मजिया, रहिले पड़िया,

से पदे नहिल आश।

आपन करम, भुजाये शमन,

कहये लोचनदास।।४।।

१. श्रीगौरांग महाप्रभु और श्रीनित्यानन्द प्रभु दोनों ही अत्यन्त करुणामय हैं। वे सभी अवतारों के शिरोमणि हैं तथा आनन्द के अपूर्व भण्डार हैं।

२. हे भाई! तुम दृढ़ विश्वास के साथ श्रीचैतन्य और नित्यानन्द प्रभु का भजन करो । भोगविषयों को त्यागकर तुम इन दोनों के प्रेमरस में डूबकर अपने मुख से केवल हरि-हरि का उच्चारण करो।

३. हे भाई! पूरे त्रिभुवन में तुम्हें इन दोनों से अधिक दयालु अन्य कोई नहीं मिलेगा । इनके गुणों की महिमा सुनकर पशु-पक्षियों का हृदय भी द्रवित हो जाता है तथा पत्थर भी विदीर्ण हो जाते हैं।

४. मैं तो सांसारिक विषयों में ही मग्न रहा और गौर-निताई के चरणकमलों के प्रति मेरी कोई रुचि जागृत नहीं हुई। लोचनदास कहते हैं कि मेरे कर्मफलों के कारण ही यमदूत मुझे यातनायें दे रहे हैं।

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