निताइ-पद-कमल

निताइ-पद-कमल

@Vaishnavasongs

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निताइ-पद-कमल

निताइ-पद-कमल, कोटिचन्द्र-सुशीतल,

ये छायाय जगत जुड़ाय।।

हेन निताइ बिने भाइ, राधाकृष्ण पाइते नाइ,

दृढ़ करि धर निताइर पाय।।१।।

से संबंध नाहि जार, वृथा जन्म गेल तार,

सेइ पशु बड दुराचार।

निताई ना बोलिलो मुखे, मजिल संसारसुखे,

विद्याकुले कि करिबे तार।।२ ।।

अहंकारे मत्त होइया, निताई-पद पासरिया,

असत्येरे सत्य करि' मानि।।

निताइयेर करुणा हबे, ब्रजे राधाकृष्ण पाबे,

धर निताइयेर चरण दु:खानि।।३।।

निताइयेर चरण सत्य, ताँहार सेवक नित्य,

निताइ-पद सदा कर आश।।

नरोत्तम बड़ दु:खी, निताई मोरे कर सुखी,

राख रांगा चरणेर पाश।।४।।

१. श्रीनित्यानन्द प्रभु के चरणकमल करोड़ों चन्द्रमाओं के समान शीतलता प्रदान करते हैं। यदि पूरे विश्व में सच्ची शन्ति लानी है तो हमें श्रीनित्यानन्द प्रभु का आश्रय लेना होगा । जबतक व्यक्ति उनके चरणकमलों की छाया का आश्रय नहीं लेता तबतक वह श्री श्रीराधा-कृष्ण तक नहीं पहुँच सकता। इसलिए हमें दृढ़ता से श्रीनित्यानन्द प्रभु के चरणकमलों को पकड़ लेना चाहिए।

२. यदि किसी ने श्रीनित्यानन्द प्रभु के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित नहीं किया है, उसने अपना मूल्यवान मनुष्य जीवन व्यर्थ ही नँवा दिया है। ऐसा मनुष्य दुराचारी पशु के समान ही है। चूंकि उसने कभी नित्यानन्द प्रभु के पवित्र नाम का उच्चारण नहीं किया है। और सदैव इन्द्रियभोग में आसक्त रहता है, उसकी विद्या और उच्चकुल किस प्रकार उसकी सहायता कर पायेंगे ?

३. मिथ्या अहंकार स्वयं को शरीर मानकर मत्त होने से व्यक्ति सोचता है, “अरे, ये नित्यानन्द कौन है? ये मेरे लिए क्या करेंगे? मैं इनकी परवाह नहीं करता।” इसका अर्थ है कि वह झूठ को सच मान रहा है। यदि आप वास्तव में राधा-कृष्ण का संग चाहते हैं तो पहले आपको श्रीनित्यानन्द प्रभु की कृपा प्राप्त करनी होगी। जब वे आप पर दयालु होंगे तभी आप राधा-कृष्ण के पास जा सकेंगे। इसलिए सभी दुःखों को नष्ट करने वाले श्रीनित्यानन्द प्रभु के चरणों को अपने हृदय में धारण कीजिए।

४. श्रीनित्यानन्द प्रभु के चरणकमल ही एकमात्र सत्य वस्तु है और उनके सेवक की शाश्वत हैं। सदैव श्रीनित्यानन्द प्रभु के चरणकमलों को प्राप्त करने की आस रखें । नरोत्तम दास अत्यन्त दुःखी है, इसलिए नित्यानन्द प्रभु कृपया मुझे सुखी बना दीजिए। हे भगवन्, कृपया मुझे सदैव अपने चरणकमलों के पास रखें।

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