नव गौरवरं नवपुष्प-शरम् - श्रीशचीसुताष्टकम्

नव गौरवरं नवपुष्प-शरम् - श्रीशचीसुताष्टकम्

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श्रीशचीसुताष्टकम् (श्रील सार्वभौम भट्टाचार्य कृत)

नव गौरवरं नवपुष्प-शरम् ।

नवभाव-धरमं नवलास्य-परम।

नवहास्य-करं नवहेम-वरम्

प्रणमामि शचीसुत-गौरवरम्।।१।।

नवप्रेम-युतं नवनीत-शुचम्

नववेश-कृतं नवप्रेम-रसम्।

नवधा विलसत शुभप्रेममयम् ।

प्रणमामि शचीसुत-गौरवरम्।।२।।

हरिभक्ति-परं हरिनाम-धरम् ।

कर-जाप्य-करं हरिनाम-परम्।

नयने सततं प्रणयाश्रु-धरम्

प्रणमामि शचीसुत-गौरवरम्।।३।।

सततं जनता-भव-ताप-हरम्

परमार्थ-परायण-लोक-गतिम्।

नव-लेह-करं जगत्-ताप-हरम्

प्रणमामि शचीसुत-गौरवरम्।।४।।

निज-भक्ति-करं प्रिय-चारुतरम्

नट-नर्तन-नागर-राज-कुलम्।

कुल-कामिनी-मानस-लास्य-करम्

प्रणमामि शचीसुत-गौरवरम्।।५।।

करताल-वलं कल-कण्ठ-रवम्

मृदु-वाद्य-सुवीणिकया मधुरम्।

निज-भक्ति-गुणावृत-नाट्य-करम्

प्रणमामि शचीसुत-गौरवरम्।।६।।

युगधर्म-युतं पुनर्नन्द-सुतम्

धरणी-सुचित्रं भव-भावोचितम्।

तनु-ध्यान-चितं निज-वास-युतम् ।

प्रणमामि शचीसुत-गौरवरम्।।७।।

अरुणं नयनं चरणं वसनम्

वदने स्खलितं स्वक्-नाम-धरम्।

कुरुते सुरसं जगतः जीवनम्

प्रणमामि शचीसुत-गौरवरम्।।८।।

१. उनकी देह का रंग कुमकुम मिश्रित ताजे माखन की कान्ति के समान है। वे नवपुष्पों के बाणों से प्रहार करने वाले सुन्दर कामदेव हैं। वे सदैव भक्तिरस के नये-नये भावों का प्रदर्शित करते हैं। भाव-भंगिमाओं के साथ नृत्य उन्हें भाता है। वे हर समय नये-नये मजाक करते हैं जिससे सभी हँसते हैं। उनका रंग पिघले सोने के समान है। मैं शचीमाता के पुत्र श्रीगौरांग महाप्रभु को प्रणाम करता हूँ।

२. वे सदैव भगवद्प्रेम के नवनवायमान प्रेम से युक्त रहते हैं। उनकी कान्ति नवनीत के समान है। वे सदैव नये स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और श्रीकृष्ण-प्रेम के नये-नये रसों का आस्वादन करते हैं। भक्ति की नौ-विधियों का पालन करते हुए वे नौ प्रकार से प्रकाशित होते हैं। वे सर्वाधिक शुभकारी प्रेम से युक्त हैं। मैं शचीमाता के पुत्र श्रीगौरांग महाप्रभु को प्रणाम करता हूँ।

३. वे श्रीहरि की भक्ति में लीन रहते हैं। वे नियमित रूप से हरि के नामों का जप करते हैं। जप करते समय वे अपनी अँगुलियों से उसे गिनते हैं। वे हरिनाम से आसक्त हैं। और उनकी आँखों में सदैव प्रेम के आँसु भरे रहते हैं। मैं शचीमाता के पुत्र श्रीगौरांग महाप्रभु को प्रणाम करता हूँ।

४. वे सदैव मनुष्यों के त्रितापों को हरते हैं। अपने परम लाभ को समझने वाले लोगों के लिए वे सर्वोच्च लक्ष्य हैं। वे लोगों को मधुमक्खी बनने के लिए प्रेरित करते हैं (जो कृष्णप्रेम रूपी शहद के लिए आतुर रहती है)। वे भौतिक जगत् की दावाग्नि को दूर करते हैं। मैं शचीमाता के पुत्र श्रीगौरांग महाप्रभु को प्रणाम करता हूँ।

५. वे स्वयं अपनी भक्ति को बढ़ावा देते हैं। वे अपने प्रिय सेवकों के लिए सर्वाकर्षक हैं। अपने मधुर नृत्य से वे नटवर-नागर-राज के लक्षण दर्शाते हैं। वे गाँव की युवा स्त्रियों के मनों को नृत्य करने के लिए बाध्य करते हैं। मैं शचीमाता के पुत्र श्रीगौरांग महाप्रभु को प्रणाम करता हूँ।

६. वे करताल बजाते हैं और उनके कण्ठ से मधुर ध्वनि प्रवाहित होती है तथा वीणा के राग धीरे-धीरे बजते हैं। इस प्रकार वे भक्तों को ऐसे नाट्य करने के लिए प्रेरित करते हैं जो स्वयं उनकी भक्ति से युक्त होते हैं। मैं शचीमाता के पुत्र श्रीगौरांग महाप्रभु को प्रणाम करता हूँ।

७. वे युगधर्म संकीर्तन लेकर आये हैं, जो कलियुग का एकमात्र धर्म है। उनके रूप में नन्द महाराज के पुत्र पुनः प्रकट हुए हैं। वे पृथ्वी के असाधारण प्रदिप्त आभूषण हैं। जन्म-मृत्यु के संसार में उनके प्रचार का भाव अत्यन्त उपयुक्त है। उनका मन स्वयं अपने कृष्ण-रूप के चिन्तन पर स्थित रहता है। वे सदैव अपने धाम में निवास करते हैं। मैं शचीमाता के पुत्र श्रीगौरांग महाप्रभु को प्रणाम करता हूँ।

८. उनके नेत्र, उनके तलवे और उनके वस्त्र प्रात:कालीन सूर्य के समान लालिमायुक्त हैं। जब वे स्वयं अपने नामों का उच्चारण करते हैं तो उनकी वाणी कम्पकम्पा उठती है। सम्पूर्ण जगत् में वे मधुर रसों को उजागर करते हैं। मैं शचीमाता के पुत्र श्रीगौरांग महाप्रभु को प्रणाम करता हूँ।

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