मधुरम् मधुरेभ्यो ऽ पि
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श्री हरेर नामाष्टक
मधुरम् मधुरेभ्यो ऽ पि मंगलेभ्यो ऽपि मंगलम्
पावनम् पावनेभ्यो ऽ पि हरेरे नामैव केवलम् ।।१।।
आब्रह्म-स्तंब पर्यंतम् सर्व माया-मयम् जगत्
सत्यम् सत्यम् पुनःसत्यम् हरेर नामैव केवलम् ।।२।।
स गुरुः स पिता चापि सा माता बांधवोऽपि सः
शिक्षयेत् सदा स्मार्तुम हरेर नामैव केवलम् ।।३।।
निःश्वासे नहि विश्वासः कदा रूद्धो भविष्यति
कीर्तनीय मतो बाल्याद् हरेर नामैव केवलम् ।।४।।
हरिः सदा वसत् तत्र यत्र भागवता जनाः
गायन्ति भक्ति भावेन हरेर नामैव केवलम् ।।५।।
अहो दुःखम् महादुःखम् दुःखाद् दुःखतरम् यतः
काचायम् विस्मृतम् रत्न हरेर नामैव केवलम् ।।६।।
दीयताम् दीयताम् कर्णो नीयताम् नीयताम् वचः
गीयताम् गीयताम् नित्यम् हरेर नामैव केवलम् ।।७।।
तृण कृत्य जगत् सर्वम् राजते सकल - परम्
चिदानन्द मयम् शुद्धम् हरेर नामैव केवलम् ।।८।।
अनुवाद
।।१।। जो किसी भी प्रकार के मिठास से मीठा है, जो किसी भी प्रकार के परम पवित्र पदार्थ से भी परमपवित्र है, जो सभी परमशोधकारी शुद्धता से शुद्ध है वह केवल श्रीहरि का नाम जो एक ही में सबकुछ है।
।।२।। इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अति उन्नत ब्रह्माजी से लेकर एक तुच्छ तृण तक सभी परमपुरूष भगवान के मायाशक्ति के वश में है। एकमात्र श्रीहरि का नाम ही इस जगत में सत्य है, सत्य है एवं सत्य है।
।।३।। जो हमारे शाश्वत गुरू है, शाश्वत माता है, शाश्वत पिता है, एवं एक शाश्वत मित्र है वह हमे हमेशा याद रखने के लिए सिखाते है की केवल श्रीहरि का नाम ही परमपवित्र है एवं सबकुछ है।
।।४।। अन्तिम श्वास हम कब लेंगे यह हम नहीं जानते। कैसे हमारी बना-बनायी सारी भौतिक व्यवस्थाएं नष्ट हो जाएगी। हम नहीं जानते, अतः यह बुद्धिमानता होगी की हम शैशवावस्था से ही परपवित्र नाम का जप करना शुरू करे क्यो कि श्रीहरि का नाम जप करना ही सबकुछ है।
।।५।। भगवान श्रीहरि वही विराजते जंहा आध्यात्मिक रूप से विकसित आत्मा दिव्य भक्ति में उनकी स्तुति गायन करते है क्यो कि भगवान श्री हरि का नाम सबसे सुन्दर है अकेले में ही सबकुछ है।
।।६।। अरे, कितने दुःख है, दुःख से दुःखतर है, एवं इस भौतिक दुनिया में कोई भी दुःख पूर्ण है, जैसे एक काँच के टुकड़े को बहुत मुल्यवान रत्न समझ लेना जबकि श्रीहरि का नाम एकमात्र अनमोल रत्न है।
।।७।। निश्चितरूप से यह किसी ने अपनी आवाज द्वारा उच्चारण किया है। निश्चितरूप से यह पुनः पुनः गाया गया है-वह है एकमात्र श्रीहरि का नाम।
।।८।। इस परमपवित्र नाम के सामने यह ब्रह्माण्ड एक तुच्छ घास जैसा है यह सम्पूर्ण रूप से राज करता है, यह शाश्वत चेतना है जो दिव्यभाव एव परमानन्द पूर्ण है, यह सम्पूर्ण रूप से परमपवित्र है, यह केवल श्रीहरि का नाम है जो सबकुछ है।