कबे श्रीचैतन्य मोरे करिबेन दया

कबे श्रीचैतन्य मोरे करिबेन दया

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कबे श्रीचैतन्य मोरे करिबेन दया

कबे श्रीचैतन्य मोरे करिबेन दया ।

कबे आमि पाइबो वैष्णव-पद-छाया ।।१।।

कबे आमि छाडिबो एइ विषयाभिमान ।

कबे विष्णुजने आमि करिबो सम्मान ।।२।।

गल-वस्त्र कृताञ्जलि वैष्णव-निकटे ।

दन्ते तृण करि दाण्डाइबो निष्कपटे ।।३।।

काँदिया काँदिया जानाइबो दुःख-ग्राम।

संसार-अनल हुइते मागिबो विश्राम ।।४।।

शूनिया आमार दुःख वैष्णव ठाकुर ।

आमा लागि कृष्णे आवेदिबेन प्रचुर ।।५।।

वैष्णवेर आवेदने कृष्ण दयामय ।

ए हेन पामर प्रति ह बेन सदय ।।६।।

विनोदेर निवेदन वैष्णव-चरणे ।

कृपा करि सङ्गे लह एइ अकिञ्चने ।।७।।

अनुवाद

।।१।। कब श्री चैतन्य महाप्रभु मुझ पर कृपा करेंगे जिससे कि मैं वैष्णवों के चरणकमलों की छाया प्राप्त कर सकूँगा ?

॥२॥ कब मैं भौतिक विषय वासनाओं का अभिमान त्यापूँगा? कब मैं भगवान् विष्णु के भक्तों को सम्मान प्रकट करने में समर्थ बन पाऊँगा?

।।३।। जब भी वैष्णव का दर्शन करूँगा, मैं अपनी गर्दन के ईद-गिर्द वस्त्र लपेटकर, दाँतों के मध्य तिनका रखकर तथा हाथों को जोड़कर, निष्कपट भाव से उनके समक्ष खडा हो जाऊँगा।

।।४।। रोते-रोते, मैं उनसे अपने दुःखी जीवन की व्यथा-कथा कहँगा तथा मैं उनसे प्रार्थना करूँगा कि वे मुझे भौतिक जीवन की अग्नि से विश्राम प्रदान करें।

।।५।। मेरे जीवन का दुःख श्रवण के पश्चात् दयालु वैष्णव ठाकूर भगवान् कृष्ण से मेरे कल्याण की प्रार्थना करेंगे।

।।६।। वैष्णवों की प्रार्थना सुनने के पश्चात् परम दयालु कृष्ण इस अतिशय पापी व्यक्ति पर करुणा करेंगे।

।।७।। श्रील भक्तिविनोद ठाकूर वैष्णवों के चरणकमलों पर यह निवेदन करते हैं, कृपया इस भिक्षुक को अपना संग दीजिए।

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