गुरुदेव! कृपाबिन्दु दिया

गुरुदेव! कृपाबिन्दु दिया

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गुरुदेव!

गुरुदेव!

कृपाबिन्दु दिया, करो एई दासे,

तृणापेक्षा अति हीन।

सकल सहने, बल दिया कर,

निज माने स्पृहाहीन।।१।।

सकले सम्मान, करिते शकति,

देह नाथ! यथायथ।

तबे तो गाइबो, हरिनाम सुखे,

अपराध हबे हत।।२।।

कबे हेन कृपा, लभिया ए जन,

कृतार्थ हइबे नाथ।

शक्ति-बुद्धि हीन, आमि अति दीन,

कर मोरे आत्मसात।।३।।

योग्यता विचारे, किछु नाहि पाई,

तोमार करुणा सार।

करुणा ना हइले, काँदिया काँदिया,

प्राण ना राखिबो आर।।४।।

१. हे गुरुदेव! अपनी कृपा की एक बूंद देकर अपने इस दास को मार्ग में पड़े तृण से भी अधिक नम्र बना दीजिए। सभी कष्टों को सहन करने की शक्ति देते हुए मुझे निजि सम्मान की इच्छा से मुक्त कर दीजिए।

२. हे नाथ! मुझे ऐसी शक्ति दीजिए जिससे मैं सभी जीवों का यथोचित सम्मान कर सकें। केवल तभी मैं आनन्दपूर्वक भगवान् हरि के नामों का कीर्तन कर पाऊँगा और मेरे सभी अपराध नष्ट हो जायेंगे।

३. हे नाथ! कब मैं आपकी कृपा प्राप्त करके कृतार्थ होऊँगा? शक्ति और बुद्धि से हीन मैं अत्यन्त नीच और पतित हूँ। कृपया मुझे अपना लीजिए।

४. जब मैं अपनी योग्यताओं पर विचार करता हूँ तो मुझे कुछ भी सार्थक दिखाई नहीं देता। इसलिए आपकी कृपा ही मेरे जीवन का एकमात्र सार है। यदि आप मुझपर कृपालु नहीं होंगे तो मैं निरन्तर रोते हुए अपने प्राणों को धारण नहीं कर पाऊँगा ।

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