गौरांगेर दूटी पद

गौरांगेर दूटी पद

@Vaishnavasongs

AUDIO

गौरांगेर दूटी पद

गौरांगेर दूटी पद, जार धन सम्पद,

से जाने भकति-रस-सार।

गौरांगेर मधुर-लीला, जार कर्णे प्रवेशिला,

हृदय निर्मल भेल तार।।१।।

जे गौरांगेर नाम लय, तार हय प्रेमोदय,

तारे मुइ जाइ बलिहारी।

गौरांग-गुणेते झुरे, नित्यलीला तारे स्फुरे,

से जन भकति-अधिकारी।।२।।

गौरांगेर संगी गणे, नित्यसिद्ध करि माने,

से जाय ब्रजेन्द्रसुत-पाश।

श्रीगौड़मण्डल-भूमि, जेबा जाने चिन्तामणि,

तार हय व्रजभूमे वास।।३ ।।

गौर-प्रेम-रसार्णवे, से तरंगे जेबा डूबे,

से राधामाधव-अन्तरंग।

गृहे वा वनेते थाके, ‘हा गौरांग' बोले डाके,

नरोत्तम मांगे तार संग।।४ ।। |

१. जिस किसी ने भी श्रीचैतन्य महाप्रभु के चरणकमलों को अपनी एकमात्र सम्पत्ति के रूप में स्वीकार किया है वह भक्ति के सच्चे सार को जानता है। यदि कोई श्रीचैतन्य महाप्रभु की मधुर लीलाओं को ध्यानपूर्वक सुनता है तो तुरन्त उसका हृदय समस्त भौतिक कल्मषों से मुक्त हो जायेगा।

२. केवल श्रीचैतन्य महाप्रभु के नाम का उच्चारण करने से व्यक्ति भगवद्प्रेम विकसित कर लेता है। ऐसे भक्त की मैं बलिहारी जाता हूँ। यदि कोई श्रीचैतन्य महाप्रभु के दिव्य गुणों को सुनने मात्र से भावविभोर होकर क्रंदन करता है तो वह तुरन्त राधा-कृष्ण की दिव्य प्रेमलीलाओं को समझ सकता है।

३. जो कोई यह समझ जाता है कि श्रीचैतन्य महाप्रभु के पार्षद नित्य मुक्त रहते हैं वह व्यक्ति अगले जन्म में श्रीव्रजभूमि में जन्म लेता है। यदि कोई समझ जाता है कि गौड़मण्डल और वृन्दावन में कोई भेद नहीं है तो वह वास्तव में वृन्दावन में ही रहता है।

४. जो कोई श्रीचैतन्य महाप्रभु द्वारा वितरित किये जा रहे भगवद्प्रेम रूपी समुद्र की लहरों में गोते लगाता हुआ आनन्द लेते है वह तुरन्त श्री श्रीराधा-माधव का अंतरंग सेवक बन जाता है। इससे अन्तर नहीं पड़ता कि वह भक्त गृहस्थ है या वानप्रस्थ । यदि कोई वास्तव में श्रीगौरांग महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन में भाग लेता है निरन्तर उनके नामों का कीर्तन करता है, नरोत्तमदास ऐसे भक्त के संग की कामना करता है।

Report Page