गौराङ्ग करुणा करो

गौराङ्ग करुणा करो

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गौराङ्ग करुणा करो

गौराङ्ग करुणा करो, दीन हीन जने ।

मो-सम पतित प्रभु, नाहि त्रिभुवने ।।१।।

दन्ते तृण धरी गौर, डाकि हे तोमार ।।

कृपा करी एसो आमार, हृदय मंदिरे ।।२।।

जदि दया ना करिबे, पतित देखिया ।

पतित पावन नाम, किसेर लागिया ।।३।।

पडेचि भव तुफाने, नाहिक निस्तार ।

श्रीचरण तरणी दाने, दासे कर पार ।।४।।

श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु, दासेर अनुदास ।

प्रार्थना करये सदा, नरोत्तम दास ।।५।।

।।१।। हे मेरे प्रिय भगवान गौरांग, कृपापूर्वक इस दीन-हीन एवं पतित आत्मा को आपकी कृपा दीजिए। हे भगवान! तीनो भुवनो में, मुझसे अधिक पतित आपको और कोई नहीं मिलेंगे।

।।२।। अपने दाँतो तले घास दबाकर हे भगवान गौर मैं आपको अभी बुलाता हूँ। | कृपापूर्वक मुझपर करूणा कीजिए एवं मेरे हृदय मंदिर में विराजिए।

।।३।। मैं पतित हूँ यह सोचकर अगर आप मुझपर करूणा नहीं करते है-फिर आप कैसे पतित पावन है? जो पतितो का उद्धारकारी एवं कृपालु तथा करूणामय है।

।।४।। मै इस भौतिक जगत के हिंसापूर्ण सागर के तुफानी तरंगो मे फसा हुआ हैं जहां से निकलने का कोई उपाय नहीं है। दयापूर्वक मुझे आपके चरणकमलों में आश्रय दीजिए जिसे एक नाव के साथ तुलना किया गया है। जिसके द्वारा आपका यह दास इस भवसागर के जन्म-मृत्यू के बन्धन को पार कर जाएगा।

।।५।। भगवान श्रीकृष्ण चैतन्य के दासो के दास नरोत्तम दास हाथ जोड़ कर आपसे यह प्रार्थना कर रहा है।

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