दुर्लभ मानव-जन्म
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दुर्लभ मानव-जन्म
दुर्लभ मानव-जन्म लभिया संसारे।।
कृष्ण ना भजिनु दु:ख कहिबो काहाँरे? ।।१।।
‘संसार’ ‘संसार', कोरे मिळे गेलो काल ।
लाम ना कोइलो किछु, घटिलो जंजाल ।।२।।
किसेर संसार एइ छायाबाजि प्राय।
इहाते ममता कोरि' वृथा दिन जाय ।।३।। |
ए देह पतन हो'ले कि रो'बे आमार? ।
केहो सुख नाहि दिबे पुत्र-परिवार ।।४।।
गर्दभेर मत आमि कोरि परिश्रम ।।
कार लागि' एतो कोरि, ना घुचिलो भ्रम ।।५।।
दिन जाय मिछ काजे, निशा निद्रा-बाशे।
नाहि भावि - मरण निकटे आछे बोसे ।।६।।
भालो मन्द खाइ, हेरि, परि, चिन्ता-हीन ।
नाहि भावि, ए देहो छाडिबो कोन दिन ।।७।।
देहो-गेहो-कलत्रादि-चिन्ता अविरत ।
जागिछे हृदये मोर बुद्धि कोरि’ हत ।।८।।
हाय, हाय! नाहि भावि अनित्य ए सब ।।
जीवन विगते कोथा रोहिबे वैभव? ।।९।।
स्मशाने शरीर मम पडिया रोहिबे ।
विहंग-पतंग ताय विहार कोरिबे ।।१०।।
कुकुर सृगाल सब आनन्दित ह'य।
महोत्सव करिबे आमार देह लय ।।११।।
जे देहेर एइ गति, ताँर अनुगत ।
संसारवैभव आर बंधु-जन जत ।।१२।।
अतएव माया-मोह छाडि' बुद्धिमान ।
नित्य-तत्त्व कृष्ण-भक्ति करुन संधान ।।१३।।
१. यद्यपि मुझे सर्वाधिक दुर्लभ मनुष्य देह प्राप्त हुई है, किन्तु ऐसा अवसर प्राप्त करके भी मैंने भगवान श्रीकृष्ण का भजन नहीं किया और अपना जीवन व्यर्थ गंवाया। अपनी दुःखभरी कहानी अब मैं किसे सुनाऊँ?
२. मैंने विवाह करके सांसारिक जीवन में प्रवेश किया और व्यर्थ ही अपना समय आँवा दिया। इससे न तो मुझे कोई स्थाई लाभ नहीं मिला और न ही मेरी समस्याओं का समाधान हो पाया।
३. किस प्रकार का संसार है यह? यह कोई जादुई खेल के समान है जहाँ मेरी आँखों के समाने मात्र परछाइयाँ हिलती-डुलती रहती हैं। ऐसे संसार से मैं गहरी आसक्ति अनुभव करता हूँ और इसलिए दिन-प्रतिदिन मेरा समय व्यर्थ ही जा रहा है।
४. जब यह शरीर पृथ्वी पर मृत पड़ा होगा तो फिर मेरा क्या रहेगा? उस क्षण मेरे सभी पुत्र और परिजन मुझे किसी भी प्रकार का सुख नहीं दे पायेंगे।
५. मैं प्रतिदिन एक गधे के समान कठोर परिश्रम करता हूँ और अब मैं सोचता हूँ कि किसके लिए मैंने इतना परिश्रम किया? अभी तक मैं अनेक उलझनों से घिरा हूँ।
६. मेरा दिन व्यर्थ के कार्यों में गुजर जाता है और निद्रा के वश में मैं रातें व्यर्थ वा देता हूँ। पूरे दिन मैं कभी इस बात पर विचार नहीं करता कि क्रूर मृत्यु सदैव मेरे निकट बैठी रहती है।
७. मैं चिन्तामुक्त जीवन जीने की कल्पना करता हूँ; कभी कम खाकर तो कभी अधिक खाकर । कई बार मैं बाहर घूमने जाता हूँ और कभी नहीं । कई बार मैं अच्छे वस्त्र पहनता हूँ और यदि मन नहीं करता तो मैं सादे ही पहन लेता हूँ। मैं इतना मनमौजी जीवन जी रहा हूँ कि कभी विचार नहीं करता कि एक दिन मुझे यह शरीर छोड़ना पड़ेगा।
८. किन्तु वास्तव में मेरा कमजोर हृदय सदैव अपने शरीर, घर, पत्नी, परिवार और अपने सामाजिक कर्तव्यों के प्रति हर समय चिन्तित रहता है। इन सभी चिन्ताओं ने मेरी बुद्धि को नष्ट कर दिया है।
९. हाय! हाय! कितनी दयनीय दशा आ खड़ी हुई है! इन सभी समस्याओं में फँसे रहकर मैंने कभी विचार नहीं किया कि ये सब अनित्य है और शीघ्र ही नष्ट हो जायेगा । मेरे मरने के बाद मेरा यह सब वैभव कहाँ जायेगा?
१०. एक दिन आयेगा जब मेरा शरीर श्मशान में निर्जीव पड़ा रहेगा और अनेक कौवे, गिद्ध, चींटियाँ और कीड़े आकर उसपर खेलकूद करेंगे।
११. सभी कुत्ते और सियार उसे देखकर अत्यन्त आनन्दित हो जायेंगे और प्रसन्न होकर मेरे शरीर को लेकर एक बड़े महोत्सव का आयोजन करेंगे।
१२. देखो ! इस भौतिक शरीर की यह अंतिम गति है। और सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि सभी भौतिक वैभव जैसे मेरा घर, परिवार और मित्र, उन सभी की भी यही गति निश्चित है।
१३. इसलिए, जो बुद्धिमान हैं मैं उन्हें परामर्श देता हूँ - ‘माया द्वारा दिये गये इन भ्रमों को छोड़ दो और श्रीकृष्ण की शुद्धभक्ति प्राप्त करने के साधन की खोज करो, क्योंकि वही एकमात्र सत्य है।''