अनादि करम-फले

अनादि करम-फले

@Vaishnavasongs

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अनादि करम-फले

अनादि करम-फले, पडि' भवार्णव-जले,

तरिवारे ना देखि उपाय।

ए विषय-हलाहले, दिवा-निशि हिया ज्वले,

मन कभु सुख नाहि पाय।।१।।

आशा-पाश शतशत, क्लेश देय अविरत,

प्रवृत्ति-उर्मिर ताहे खेला।

काम-क्रोध आदि छय, बाटपाडे देय भय,

अवसान हैल आसि' बेला।।२।।

ज्ञान-कर्म-ठग दुइ, मोरे प्रतारिया लइ,

अवशेषे फेले सिन्धु-जले।

ए हेन समये बन्धु, तुमि कृष्ण कृपासिन्धु,

कृपा करि' तोल मोरे बले।।३।।

पतित किमरे धरि', पादपद्मधूलि करि',

देह भक्तिविनोद आश्रय।।

आमि तव नित्यदास, भुलिया मायार पाश,

बद्ध ह'ये आछि दयामय।।४।।

१. अपने पूर्व कर्मफलों के कारण मैं अज्ञानता के इस महासागर में गिर पड़ा हूँ और इससे बाहर निकलने का मुझे कोई मार्ग नहीं सूझ रहा । दिन-रात मेरा हृदय सांसारिक विषयों की अग्नि से दग्ध रहता है और मेरा मन बिल्कुल भी शान्त नहीं है।

२. मैं सुखी बनने के लिए हर समय सैकड़ों-हजारों योजनायें बनाता रहता हूँ किन्तु वे योजनायें मुझे सदैव क्लेश देती हैं। मैं बार-बार भौतिकवाद रूपी समुद्र की लहरों के थपेड़े खा रहा हूँ। साथ ही अनेक लुटेरे मुझे भयभीत कर रहे हैं, जिनमें छह प्रमुख हैं - काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य । इस प्रकार मेरा जीवन अन्त होने को आया है।

३. ज्ञान और कर्म रूपी दो ठगों ने मुझे ठग लिया और मुझे पथभ्रष्ट करके कष्टों के सागर में धकेल दिया । इस दयनीय अवस्था में दया के सागर हे प्रिय श्रीकृष्ण, आप ही मेरे एकमात्र मित्र हैं। इस अंधकार के सागर से निकलने की मुझमें कोई शक्ति नहीं है, इसलिए मैं आपके चरणकमलों पर प्रार्थना करता हूँ कि कृपया अपने बल द्वारा मुझे इस कष्टों के सागर से बाहर निकाल लीजिए।

४. कृपया अपने इस पतित दास को उठाइये और अपने चरणकमलों पर धूली का एक कण बना लीजिए। कृपया भक्तिविनोद को अपने पादपद्मों पर आश्रय प्रदान कीजिए। मैं आपका नित्य सेवक हूँ, किन्तु जैसे-तैसे मैं आपको भूलकर इस माया के मोहजाल में गिर पड़ा हूँ। कृपया मेरी रक्षा कीजिए।

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