आर केनो मायाजाले

आर केनो मायाजाले

@Vaishnavasongs

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आर केनो मायाजाले

आर केनो मायाजाले पडितेछ जीव मीन ।

नाहि जान बद्ध ह ये खे तुमि चिरदिन ।।

अति तुच्छ भोग-आशे, बन्दि ह ये माया-पाशे ।

रहिले विकृत भावे दण्ड्य यथा पराधीन ।।

एखन ओ भक्ति बले कृष्ण प्रेम सिन्धु जले ।

क्रीडा करि अनायासे थाक तुमि कृष्णाधीन ।।

अरे जीव ! तु अभी तक माया के जाल में क्यों पड़ा हुआ है? क्या तू इस प्रकार बद्ध होकर चिरदिन के लिए माया के जाल में ही पडा रहेगा।

अति तुच्छ सांसारिक भोगों की आशा से माया का दास होकर तथा अपने नित्य स्वरूप को भूलकर पराधीनों की भाँति माया का दण्ड भोग रहा है।

अतः अब भक्ति के बल से अर्थात् भक्ति का आश्रय ग्रहणकर कृष्ण के प्रेमरूपी सागर के जल में क्रीडा करते हुए अनायास ही कृष्ण के दास बन जाओ।

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