यदि गौर ना होइतो

यदि गौर ना होइतो

@Vaishnavasongs

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यदि गौर ना होइतो

यदि गौर ना होइतो, तबे कि होइतो,

केमोने धरिताम दे।

राधार महिमा, प्रेमरस सीमा,

जगते जानातो के ।।१।।

मधुर वृन्दा, विपिन-माधुरी,

प्रवेश चातुरी सार ।

व्रज-युवति, भावेर भकति,

सकति होइत कार ।।२।।

गाओ गाओ पुनः, गौरांगेर गुण,

सरल करिया मन ।

ए भव-सागरे, एमन दयाल,

ना देखिये एक-जन ।।३।।

(आमि) गौरांग बोलिया, ना गेनु गलिया,

केमोने धरिनु दे।

वासुर हिया, पाषाण दिया,

केमोने गडियाछे ।।४।।

१. यदि भगवान् गौरहरि इस कलियुग में अवतरित न हुए होते तो हमारा क्या होता? किस प्रकार हम अपनी देह को धारण कर पाते? यदि वे न होते तो इस संसार में कौन राधारानी के सर्वोच्च प्रेमरस की सीमाओं को जान पाता?

२. किसके पास व्रजगोपियों के चरणचिह्नों का अनुगमन करते हुए भक्ति करने की शक्ति थी? और वृन्दादेवी के परम मधुर वन वृन्दावन में प्रवेश करने के लिए व्रजगोपियों की चतुरता ही एकमात्र योग्यता है।

३. अरे मन, कृपया बार-बार श्रीगौरांग के गुणों का कीर्तन करो! बस अपने हृदय को सरल रखो। इस अज्ञानता के सागर में श्रीगौरहरि जैसा दयालु अन्य कोई नहीं है।

४. यद्यपि मैं श्रीगौरांग महाप्रभु के नामों का कीर्तन करता हूँ, न जाने क्यों मेरा हृदय प्रेम से पिघलता नहीं है। क्यों मैंने अभी तक अपना शरीर धारण किया हुआ है? विधाता ने वासुघोष के शरीर में हृदय के स्थान पर पाषाण क्यों रखा है?

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