विद्यार विलासे

विद्यार विलासे

@Vaishnavasongs

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विद्यार विलासे

विद्यार विलासे, काटाइनु काल,

परम साहसे आमि।

तोमार चरण, ना भजिनु कभु,

एखन शरण तुमि।।१।।

पढ़िते, पढ़िते भरसा बाढिल,

ज्ञाने गति हबे मानि।

से आशा विफल, से ज्ञान दुर्बल,

से ज्ञान अज्ञान जानि।।२।।

जड़ विद्या यत, मायार वैभव,

तोमार भजने बाधा।

मोह जनमिया, अनित्य संसारे,

जीव के करये गाधा।।३।।

सेइ गाधा ह'ये, संसारेर बोझा,

बहिनु अनेक काल।।

वार्द्धक्ये एखन, शक्तिर अभावे,

किच्छु नाहि लागे भाल।।४।।

जीवन यातना, हइल एखन,

से विद्या अविद्या भेल।

अविद्यार ज्वाला, घटिल विषम,

से विद्या हइल शेल।।५।।

तोमार चरण बिना किछु धन,

संसारे ना आछे आर।।

भकतिविनोद, जड़ विद्या छाड़ि,

तुया पद कर सार।।६।।

१. बड़े उत्साह के साथ मैंने भौतिक विद्या अर्जित करने के सुख में बिताया और कभी भी आपके चरणकमलों की सेवा नहीं की। हे भगवन्! अब आप मेरे एकमात्र आश्रय हैं।

२. विद्या अर्जित करते-करते मेरी आशायें बढ़ने लगी और मैं ज्ञानार्जन को ही जीवन का सच्चा लक्ष्य मानने लगा। किन्तु वे आशायें कितनी व्यर्थ सिद्ध हुईं क्योंकि मेरा सम्पूर्ण ज्ञान दुर्बल पड़ गया है। अब मैं जान पाया हूँ कि वह सब विद्वता शुद्ध अज्ञानता थी।

३. इस संसार का समस्त ज्ञान आपकी माया की क्षणभंगुर शक्ति द्वारा उत्पन्न है। यह आपकी भक्ति में एक बाधा है। भौतिक ज्ञान इस अस्थाई जगत् के प्रति मोह जागृत करके शाश्वत आत्मा को गधा बना देता है।

४. यहाँ एक व्यक्ति है जो वैसा गधा बन हुआ है और उसने इतने लम्बे काल से भौतिक अस्तित्व रूपी व्यर्थ बोझे को ढोया हुआ है।

५. अब मेरा जीवन एक यातना बन गया है क्योंकि मेरी तथाकथित विद्वता और ज्ञान व्यर्थ अज्ञानता सिद्ध हो चुकी है। भौतिक ज्ञान एक तीक्ष्ण शूल बनकर अज्ञानता की असहनीय ज्वलनशील पीड़ा द्वारा मेरे हृदय को भेद रहा है। ।

६. हे भगवन्, आपके चरणकमलों के अतिरिक्त इस संसार में अन्य कोई भी वस्तु आश्रय के योग्य नहीं है। भक्तिविनोद अपने समस्त भौतिक ज्ञान को त्यागकर आपके चरणकमलों को अपने जीवन के एकमात्र सार के रूप में स्वीकार करते हैं।

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