श्रीकृष्णकीर्तने जदी मानस तोहार

श्रीकृष्णकीर्तने जदी मानस तोहार

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श्रीकृष्ण कीर्तने जदी मानस

श्रीकृष्णकीर्तने जदी मानस तोहार

परम जतने ताँह लभ अधिकार ।।१।।

तृणाधिक हीन, दीन, अकिंचन छार

आपने मानाबि सदा छाड़ि अहंकार ।।२।।

वृक्ष-सम क्षमा-गुण करबी साधन

प्रति हिंसा त्यजि अन्ये करबि पालन ।।३।।

जीवन-निवहि आने उदेग ना दिबे

पर-उपकारे निज-सुख पासरिबे ।।४।।

हइले-ओ सर्व-गुणे-गुणी महाशय

प्रतिष्ठाशा छाडि कर अमानी हृदय ।।५।।

कृष्ण-अधिष्ठान सर्व-जीवे जानि सदा

कबि सम्मान सबे आढरे सर्वदा ।।६।।

दैन्य, दया, अन्ये मान, प्रतिष्ठा-वर्जन

चारि गुणे गुणी हय, करह कीर्तन ।।७।।

भकतिविनोद काँदि बले प्रभु-पाय

हेन अधिकार कबे दिबे हे आमाय ।।८।।

अनुवाद

।।१।। अगर तुम्हारा मन हमेशा भगवान कृष्ण के स्तुतिगायन में लीन रहते है तो श्रीकृष्ण कीर्तन के नियम के अनुसार तुम दिव्य गुणावली को अवश्य प्राप्त करोगे।

।।२।। तुम्हे सभी मिथ्या अहंकारों को त्यागना चाहिए और अपने को निकम्मा, दीनहीन निराश्रय, नीच एवं एक घास से भी तुच्छ और विनम्र समझना चाहिए।

।।३।। एक पेड़ के तरह अपनी सहनशीलता को अभ्यास करना चाहिए एवं अन्य सभी जीवात्माओं के लिए हिंषाभाव को त्यागना चाहिए हमेशा उनकी सेवा करनी चाहिए एवं उनकी रक्षा करनी चाहिए।

।।४।। जीवन व्यतीत करते समय किसी को अशांति नही पहुँचानी चाहिए और अपनी भलाई एवं सुख की चिन्ता को त्यागकर सबकी भलाई एवं सुख की चिन्ता करनी चाहिए।

।।५।। जब कोई महान बन जाता है, जब उसके पास अधिक गुणोंका श्रेय होता है तब नाम, यश आदि का लालच त्याग कर अपने हृदय को सम्पूर्ण विनम्र करना चाहिए।

।।६।। यह ध्यान में रखते हुए की भगवान कृष्ण सभी के हृदय मे अवस्थान करते है। सभी जीवात्माओं के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का प्रदर्शन करना चाहिए।

।।७।। विनम्रता, दयालुता, अन्योंके प्रति आदर-सम्मान एवं शान-शौकत से वैराग्य ये चार गुणोंद्वारा जो गुणान्वित है उनको ऐसी स्थिती मे हमेशा भगवान कृष्ण का स्तुतिगायन करना चाहिए।

।।८।। रोते हुए भक्तिविनोद अपनी प्रार्थना भगवान के चरणकमलों मे निवेदन करते हुए कहते है, 'हे भगवान ! आप कब मुझपर कृपा करके ऐसे गुणों को देंगे जिससे मैं विशेष लक्षणों को प्राप्त कर सकुंगा।

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