संसारदावानललीढलोक - श्रीगुर्वाष्टकम्

संसारदावानललीढलोक - श्रीगुर्वाष्टकम्

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श्रीगुर्वाष्टकम्

(श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर कृत)

संसारदावानललीढलोक

त्राणाय कारुण्य घनाघनत्वम् ।

प्राप्तस्य कल्याण गुणार्णवस्य ।

वंदे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।।१।।

महाप्रभोः कीर्तन नृत्यगीत

वादित्रमाद्यान् मनसो रसेन ।

रोमांच कंपाश्रुतरंग भाजो |

वंदे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।।२।।

श्रीविग्रहाराधननित्यनाना

श्रृंगार तन मंदिरमार्जनादौ ।

युक्तस्य भक्तांश्चनियुजतोऽपि|

वंदे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।।३।।

चतुरर्विध श्रीभगवद्प्रसाद

स्वाद्वन्नतृप्तान् हरिभक्त सङ्घान्।

कृत्त्वैव तृप्तिं भजत: सदैव ।

वंदे गुरोः श्रीचरणारविन्दम् ।।४।।

श्रीराधिकामाधवयोर् अपार

माधुर्यलीला गुण रूप नाम्नाम् ।

प्रतिक्षणा स्वादन लोलुपस्य

वंदे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।।५।।

निकुञ्जयुनो रति-केलि-सिद्धयै ।

या यालिभिर्युक्तिरपेक्षणीया ।

तत्रातिदाक्ष्याद् अतिवल्लभस्य

वंदे गुरोः श्रीचरणारविन्दम् ।।६।।

साक्षाद्धरित्वेन समस्तशाखै |

उक्तस्तथा भाव्यत एव सद्भिः।।

किंतु प्रभोर्य: प्रिय एव तस्य |

वंदे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।।७।।

यस्यप्रसादाद् भगवदप्रसादो

यस्याप्रसादान् न गतिः कुतोऽपि ।

ध्यायन्स्तुवंस्तस्य यशस्त्रिसन्ध्यं

वंदे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।।८।।

१. सांसारिक जीवन रूपी जंगल में लगी आग को शान्त करने के लिए जो कृपा रूपी विशाल मेघों की वर्षा से इस अग्नि का शमन करते हैं, ऐसे दिव्य गुणों के सागर श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

२. श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन में कीर्तन, नृत्य, गायन तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए जो भावविभोर हो उठते हैं, तथा अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन करते हुए जो अश्रुपात, कम्पन तथा रोमाञ्चादि भावों का अनुभव करते हैं, ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

३. श्रीगुरुदेव मंदिर में श्री श्रीराधा-कृष्ण के अर्चाविग्रहों के पूजन में स्वयं रत रहते हैं एवं अपने शिष्यों को भी पूजन, श्रृंगार तथा मंदिर के मार्जन में संलग्न करते हैं, ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

४. जब श्रीगुरुदेव भक्तों को आनन्दपूर्वक चार प्रकार के भगवद्ग्रसाद ग्रहण कर तृप्त होते देखते हैं, तो वे भी तृप्त हो जाते हैं, ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

५. श्रीगुरुदेव प्रतिक्षण श्री श्रीराधा-माधव की दिव्य लीलाओं, गुणों, रूप तथा नामों की असीमित मधुरता का आस्वादन करने के लिए लालायित रहते हैं, ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

६. श्रीगुरुदेव अतिप्रिय हैं, क्योंकि वे श्रीराधा-कृष्ण की माधुर्य लीलाओं को अत्यन्त श्रेष्ठता से सम्पन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार का आयोजन करती हुई गोपियों की सहायता करने में निपुण हैं। ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

७. समस्त शास्त्र स्वीकार करते हैं कि श्रीगुरु में भगवान् श्रीहरि के समस्त गुण विद्यमान रहते हैं और महान् सन्त भी उन्हें इसी रूप में स्वीकार करते हैं। किन्तु वास्तव में वे भगवान् को अत्यन्त प्रिय हैं, ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

८. श्रीगुरुदेव की कृपा से ही भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। श्रीगुरुदेव की कृपा के बिना कोई भी सद्गति प्राप्त नहीं कर सकता। मैं दिन में कम से कम तीन बार उनका स्मरण, गुणगान एवं उनके चरणों में वन्दना करता हूँ।

श्रीमद्गुरोरष्टकमेतदुच्चै-ब्राह्म मुहूर्ते पठति प्रयत्नात्।

यस्तेन वृन्दावननाथ साक्षात् सेवैव लभ्या जनुषोऽन्त एव।।

जो भी ब्रह्ममुहूर्त की शुभ बेला में श्रीगुरु को समर्पित इन प्रार्थनाओं को ध्यानपूर्वक गाता है, उसे मनुष्य जीवन के अन्त में वृन्दावननाथ भगवान् श्रीकृष्ण की चरणसेवा करने का लाभ प्राप्त होता है।

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