राधा-कृष्ण प्राण मोर
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राधा-कृष्ण प्राण मोर
राधा-कृष्ण प्राण मोर जुगल-किशोर
जीवन मरणे गति आरो नाहि मोर ।।१।।
कालिंदीर कूले-केली कदंबेर वन
रतन-बेदीर उपर बोसाबो दुऽजन ।।२।।
श्याम-गौरी अंगे दिबो चंदनेर गंध
चामर ढुलाबो कबे हेरि मुख-चंद्र ।।३।।
गाथिया मालतीर माला दिबो दोहार गले
अधरे तुलिया दिबो कर्पूर-तांबूले ।।४।।
ललिता विशाखा-आदि जत सखी बूंद
आज्ञाय कोरिबो सेबा चरणारविंद ।।५।।
श्री-कृष्ण-चैतन्य-प्रभुर दासेर अनुदास
सेवा अभिलाष कोरे नरोत्तम-दास ।।६।।
।।१।। युगलकिशोर श्रीश्री राधा कृष्ण ही मेरे प्राण हैं। जीवन-मरण में उनके अतिरिक्त मेरी अन्य कोई गति नहीं है।
।।२।। कालिन्दी (यमुना) के तटपर कदम्ब के वृक्षों के वन में, मैं इस युगलजोड़ी को रत्नों के सिंहासन पर विराजमान करूंगा।
।।३।। मैं उनके श्याम तथा गौर अंगों पर चन्दन का लेप करूंगा और कब उनका मुखचंद्र निहारते हुए चामर ढुलाऊँगा।
।।४।। मालती पुष्पों की माला गूंधकर दोनों के गलों में पहनाऊँगा और कपूर से सुगंधित ताम्बूल उनके मुखकमल में अर्पण करुंगा।
।।५।। ललिता और विशाखा के नेतृत्वगत सभी सखियों की आज्ञा से मैं श्रीश्रीराधा-कृष्ण के श्री चरणों की सेवा करूंगा।
।।६।। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के दासों के अनुदास नरोत्तम दास ठाकुर दिव्य युगलकिशोर की सेवा-अभिलाषा करते हैं।