ओहे! वैष्णव ठाकुर

ओहे! वैष्णव ठाकुर

@Vaishnavasongs

AUDIO 1 | AUDIO 2

ओहे! वैष्णव ठाकुर

ओहे! वैष्णव ठाकुर, दयार सागर,

ए दासे करुणा करि'।

दिया पदछाया, शोध हे आमाय,

तोमार चरण धरि।।१।।

छय वेग दमि' छय दोष शोधि',

छय गुण देह दासे।

छय सत्संग, देह हे आमारे,

बसेछि संगेर आशे।।२।।

एकाकी आमार, नाहि पाय बल,

हरिनाम-संकीर्तने।

तुमि कृपा करि', श्रद्धाबिन्दु दिया,

देह कृष्ण-नाम-धने।।३।।

कृष्ण से तोमार, कृष्ण दिते पार,

तोमार शकति आछे।।

आमि त’ काङ्गाल, कृष्ण कृष्ण बलि',

धाइ तब पाछे पाछे।।४।।

१. हे वैष्णव ठाकुर, हे दया के सागर, कृपया अपने सेवक पर कृपा कीजिए। मुझे अपने चरणकमलों की छाया प्रदान करके मेरा शुद्धिकरण कीजिए। मैं आपके चरणों को अपने हृदय में धारण करता हूँ।

२. मुझे छह प्रकार के वेगों को सहन करना सिखाइये; मेरे छह दोषों में सुधार कीजिए, मुझे छह गुण प्रदान कीजिए और मुझे छह प्रकार का साधुसंग प्रदान कीजिए।

३. मुझमें अकेले भगवान् के पवित्र नामों का कीर्तन करने की शक्ति नहीं है। कृपया श्रद्धा की मात्र एक बूंद प्रदान करके मुझे सौभाग्यशाली बना दीजिए, क्योंकि उससे मैं कृष्णनाम रूपी खजाना प्राप्त कर सकता हूँ।

४. कृष्ण आपके हैं; आपके अन्दर जिसे चाहे उसे कृष्ण प्रदान करने की शक्ति है। मैं कंगाल हूँ और केवल “कृष्ण! कृष्ण!” चिल्लाता हुआ आपके पीछे-पीछे दौड़ रहा हूँ।

Report Page