निताई गुणमणि

निताई गुणमणि

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निताई गुणमणि

निताई गुणमणि आमार निताई गुणमणि।

आनिया प्रेमेर वन्या भासाइलो अवनी।।१।।

प्रेमेर वन्या लोइया निताई आइला गौडदेशे।

डुबिलो भकत-गण दीन हीन भासे।।२।।

दीन हीन पतित पामर नाहि बाछे।

ब्रह्मार दुर्लभ प्रेम सबकारे जाचे ।।३।।

आबद्ध करुणा-सिन्धु निताई काटिया मुहान्।

घरे घरे बुले प्रेम-अमियार बान।।४।।

लोचन बोले मोर निताई जेबा ना भजिलो।

जानिया शुनिया सेइ आत्म-घाती होइलो।।५।।

१. सभी गुणों के शिरोमणि मेरे नित्यानन्द प्रभु, सभी गुणों के शिरोमणि मेरे नित्यानन्द प्रभु, भगवद्प्रेम की ऐसी बाढ़ लायें हैं जिससे सम्पूर्ण विश्व को डुबो दिया है।

२. श्रीचैतन्य महाप्रभु के निर्देश पर जगन्नाथपुरी से बंगाल लौटकर निताइ ने सभी भक्तों को प्रेम की बाढ़ में डुबो दिया । किन्तु पतित अभक्त उस बाढ़ में डूबे नहीं अपितु उस दिव्य आनन्द के सागर में तैरते रहे।

३. जिस दिव्य प्रेम को प्राप्त करना ब्रह्माजी के लिए भी दुर्लभ है, वह प्रेम उन पतित जीवों को भी मुक्त रूप से वितरित किया गया जिन्होंने इसकी इच्छा भी नहीं की थी।

४. अबतक कृपा का यह समुद्र सीमाओं से बँधा था, किन्तु निताइ ने इसकी सीमाओं को तोड़ दिया जिससे इसकी अमृतमयी धाराओं ने घर-घर में प्रवेश कर लिया ।

५. लोचनदास कहते हैं, “जो भी व्यक्ति मेरे निताई का भजन नहीं करता वह जानबूझकर आत्महत्या कर रहा है।''

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