नारद मुनि, बजाय वीणा

नारद मुनि, बजाय वीणा

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नारद मुनि, बजाय वीणा

नारद मुनि, बजाय वीणा, राधिकारमण-नामे।

नाम अमनि, उदित हय, भकत-गीत-सामे।।१।।

अमिय-धारा, वरिषे घन, श्रवण-युगले गिया।

भकतजन, सघने नाचे, भरिया आपन हिया।।२।।

माधुरी-पुर, आसव पशि, माताय जगत-जने।

केह वा काँदे, केह वा नाचे, केह माते मने मने।।३।।

पञ्चवदन, नारदे धरि, प्रेमेर सघन रोल।

कमलासन, नाचिया बले, ‘बोल बोल हरिबोल' ।।४।।

सहस्रानन, परमसुखे, ‘हरि हरि' ‘बलि' गाय।

नाम-प्रभावे, मातिल विश्व, नाम-रस सबे पाय।।५।।

श्रीकृष्णनाम, रसने स्फुरि, पूराल आमार आश।

श्रीरूप-पदे, याचये इहा, भकतिविनोद दास।।६।।

१. जब नारदमुनि अपनी वीणा बजाते हैं तो उससे राधिका-रमण नाम अवतरित होता है और भक्तों द्वारा किये जा रहे कीर्तन में तुरन्त प्रकट हो जाता है।

२. मानसून बादल के समान हरिनाम भक्तों के कानों में शुद्ध अमृत की धारा बरसाता है। दिव्य आनन्द के कारण सभी भक्त उत्साहपूर्वक हृदय भरकर नृत्य करते हैं।

३. सम्पूर्ण ब्रह्माण्डवासी दिव्य मधुरता की मदोन्मत्त करने वाली बौछारों में भीगकर पागल हो जाते हैं। कुछ लोग रोते हैं, कुछ नृत्य करते हैं और अन्य अपने मन में पूरी तरह भावविभोर हो जाते हैं।

४. पंचमुखी शिवजी नारदमुनि का आलिंगन करते हैं और दिव्य उन्माद में बारम्बार चिल्लाते हैं, जबकि ब्रह्माजी उत्साहपूर्वक नृत्य करते हुए पुकारते हैं, “आप सभी ‘हरि बोल! हरि बोल!' का कीर्तन करो ।”

५. परमसुख का अनुभव करते हुए सहस्र मुखों वाले अनन्तशेष गाते हुए ‘हरि बोल! हरि बोल!' पुकारते हैं। हरिनाम की दिव्य ध्वनि के प्रभाव से सम्पूर्ण विश्व दिव्य आनन्द में पागल हो जाता है और सभी हरिनाम के रस का आस्वादन करते हैं।

६. श्रीकृष्ण के पवित्र नाम ने मेरी जिह्वा पर प्रकट होकर मेरी समस्त इच्छायें पूरी कर दी हैं। भगवान् का यह तुच्छ सेवक भक्तिविनोद श्रील रूप गोस्वामी के चरणों पर निवेदन करता है कि हरिनाम का यह कीर्तन सदैव होता रहे।

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