नमो नम: तुलसी
@VaishnavasongsAUDIO
श्रीतुलसी प्रणाम
वृन्दायै तुलसी देव्यै प्रियायै केशवस्य च ।
विष्णुभक्ति प्रदे देवि सत्यवत्यै नमो नमः ।।
श्रीतुलसी कीर्तन
नमो नम: तुलसी कृष्णप्रेयसी नमो नमः ।
राधाकृष्ण सेवा पाबो एइ अभिलाषी ।।
ये तोमार शरण लय, तार वांच्छा पूर्ण हय । |
कृपा करि कर तारे वृंदावनवासी।।
मोर एइ अभिलाष, विलास कुंजे दियो वास ।
नयने हेरिबो सदा युगलरूप-राशि।।
एइ निवेदन धर, सखीर अनुगत कर ।
सेवा अधिकार दिये कर निज दासी ।।
दीन कृष्ण दास कय, एइ येन मोर हय।
श्रीराधा-गोविन्द प्रेमे, सदा येन भासि ।।
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यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यादिकानि च ।
तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे पदे ।।।
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श्रीतुलसी प्रणाम
हे वृन्दे! हे तुलसीदेवी! आप भगवान् केशव की प्रिया हैं। कृष्णभक्ति प्रदान करने वाली हे सत्यवती देवी, आपको बारम्बार मेरा प्रणाम है।
श्रीतुलसी कीर्तन
१. भगवान् श्रीकृष्ण की प्रियतमा हे तुलसी देवी! मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ। मेरी एकमात्र इच्छा है कि मैं श्री श्रीराधाकृष्ण की प्रेममयी सेवा प्राप्त कर सकें।
२. जो कोई भी आपकी शरण लेता है उसकी कामनायें पूर्ण होती हैं। उसपर आप अपनी कृपा करती हैं और उसे वृन्दावनवासी बना देती हैं।
३. मेरी यह अभिलाषा है कि आप मुझे भी वृन्दावन के कुंजों में निवास करने की गौड़ीय वैष्णव गीत अनुमति दें, जिससे मैं सदैव श्रीराधाकृष्ण की सुन्दर लीलाओं का दर्शन कर सकें।
४. आपके चरणों में मेरा यही निवेदन है कि मुझे किसी व्रजगोपी की अनुचरी बना दीजिए तथा सेवा का अधिकार देकर मुझे आपकी निज दासी बनने का अवसर दीजिए।
५. अति दीन कृष्णदास आपसे प्रार्थना करता है, “मैं सदा सर्वदा श्री श्रीराधागोविन्द के प्रेम में डूबा रहूँ।''
श्रीमती तुलसीदेवी की परिक्रमा करने से प्रत्येक पद पर ब्रह्महत्या तक सभी पापों का नाश हो जाता है।