मंगलाचरण

मंगलाचरण


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श्रीगुरु प्रणाम

ॐ अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम:।।

श्रील रूप गोस्वामी प्रणाम

श्रीचैतन्यमनोऽभिष्ठं स्थापितं येन भूतले।

स्वयं रूपः कदा मयं ददाति स्वपदान्तिकम्।।

श्रीहरि-गुरु-वैष्णव-वंदनम्

वन्देऽहं श्रीगुरोः श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरुन् वैष्णवांश्च

श्रीरूपं साग्रजातं सहगण रघुनाथान्वितं तं सजीवम्। |

साद्वैतं सावधूतं परिजनसहितं कृष्णचैतन्यदेवं ।

श्रीराधाकृष्णपादान् सहगणललिता श्रीविशाखान्वितांश्च।।

श्रील भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद प्रणति

नम ॐ विष्णुपादाय कृष्णप्रेष्ठाय भूतले ।

श्रीमते भक्तिवेदान्त स्वामिनिति नामिने ।।

नमस्ते सारस्वते देवे गौरवाणी प्रचारिणे ।

निर्विशेष शून्यवादी पाश्चात्य देश तारिणे ।।

श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर प्रणति

नम ॐ विष्णुपादाय कृष्णप्रेष्ठाय भूतले

श्रीमते भक्तिसिद्धांत सरस्वती इति नामिने ।।

वार्षभानवीदेवी दयिताय कृपाब्धये

कृष्णसम्बन्धविज्ञानदायिने प्रभवे नमः ।।

माधुर्योञ्ज्वल प्रेमाढ्य श्रीरूपानुगभक्तिद

श्रीगौरकरुणाशक्ति विग्रहाय नमोऽस्तुते।।

नमस्ते गौरवाणी-श्रीमूर्तये दीन-तारिणे।

रूपानुग विरुद्धाऽपसिद्धान्त-ध्वान्त-हारिणे।।

श्रील गौरकिशोरदास बाबाजी प्रणति

नमो गौरकिशोराय साक्षाद्वैराग्यमूर्तये।

विप्रलम्भरसाम्बोधे पादाम्बुजाय ते नमः।।

श्रील भक्तिविनोद ठाकुर प्रणति

नमो भक्तिविनोदाय सच्चिदानन्द नामिने।

गौरशक्तिस्वरूपाय रूपानुगवराय ते।।

श्रील जगन्नाथदास बाबाजी प्रणति

गौराविर्भावभूमेस्तं निर्देष्टा सज्जनप्रियः।

वैष्णवसार्वभौम: श्रीजगन्नाथाय ते नमः ।।

श्रीवैष्णव प्रणाम

वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्च कृपासिंधुभ्य एव च।।

पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ।।

श्रीगौरांग महाप्रभु प्रणाम

नमो महावदान्याय कृष्णप्रेम-प्रदायते ।

कृष्णाय कृष्णचैतन्य-नाम्ने गौरत्विषे नमः ।।

श्रीपंचतत्त्व प्रणाम

पञ्चतत्त्वात्मकं कृष्णं भक्तरूपस्वरूपकम्।

भक्तावतारं भक्ताख्यं नमामि भक्तशक्तिकम्।।

श्रीकृष्ण प्रणाम

हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते।

गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तुते।।

श्रीसम्बन्धाधिदेव प्रणाम

जयतां सूरतौ पङ्गोर्मम मन्दमतेर्गती।

मत्सर्वस्वपदाम्भोजौ राधामदनमोहनौ।।

श्रीअभिधेयाधिदेव प्रणाम

दिव्यद्वृन्दारण्य कल्पद्रुमाध: श्रीमद्ररत्नागार सिंहासनस्यौ।

श्रीमद्राधा श्रीलगोविन्ददेवौ

प्रेष्ठालीभि: सेव्यमानौ स्मरामि।।

श्रीप्रयोजनाधिदेव प्रणाम

श्रीमान् रासरसारंभी वंशीवटतटस्थितः।

कर्षन् वेणुस्वनैर्गोपीर्गोपीनाथ: श्रियेऽस्तु न:।।

श्रीराधा प्रणाम

तप्तकाञ्चनगौरांगी राधे वृन्दावनेश्वरी।

वृषभानुसुते देवी प्रणमामी हरिप्रिये।।

श्रीपंचतत्त्व मंत्र

(जय) श्रीकृष्णचैतन्य प्रभु नित्यानंद।

श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौर भक्तवृंद ।।

हरे कृष्ण मंत्र

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

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श्रीगुरु प्रणाम

अज्ञानरूपी अंधकार से अंधे हुए मेरे नेत्रों को प्रकाशमय ज्ञानांजनरूपी शास्त्रों की दृष्टि प्रदान करने वाले श्रीगुरु के चरणकमलों की मैं वंदना करता हूँ।

श्रील रूप गोस्वामी प्रणाम

श्रील रूप गोस्वामी, जिन्होंने इस संसार में श्रीचैतन्य महाप्रभु की इच्छा पूर्ण करने वाले आन्दोलन की स्थापना की है, वे कब मुझे अपने चरणकमलों का आश्रय प्रदान करेंगे?

श्रीहरि-गुरु-वैष्णव-वंदनम्

मैं अपने गुरुदेव एवं सभी वैष्णवों के चरणकमलों पर सादर प्रणाम करता हूँ। मैं श्रीरूप गोस्वामी और उनके बड़े भाई श्रीसनातन गोस्वामी सहित श्रीरघुनाथ दास, श्रीरघुनाथ भट्ट, श्रीगोपाल भट्ट और श्रीजीव गोस्वामी के चरणकमलों पर सादर प्रणाम करता हूँ। मैं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और श्रीनित्यानन्द प्रभु के साथ श्रीअद्वैताचार्य, श्रीगदाधर, श्रीवास और उनके अन्य सभी पार्षदों को सादर प्रणाम करता हूँ। मैं श्रीललितादेवी, श्रीविशाखादेवी एवं अन्य सखी-मंजरियों सहित श्री श्रीराधा-कृष्ण के पदकमलों की वंदना करता हूँ।

श्रील भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद प्रणति

मी कृष्णकृपाश्रीमूर्ती अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद यांना सादर प्रणाम करतो. भगवान श्रीकृष्णांच्या चरणकमलांचा पूर्ण-आश्रय घेतल्याने ते भगवान श्रीकृष्णांना अतिशय प्रिय आहेत.

गुरुदेव! आप श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी के प्रिय सेवक हैं। आप कृपा करके श्रीचैतन्य महाप्रभु के संदेश का प्रचार कर रहे हैं तथा निर्विशेष और शून्यवाद से व्याप्त पाश्चात्य जगत् का उद्धार कर रहे हैं। आपके चरणों पर मेरा सादर प्रणाम है।

श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर प्रणति

मैं कृष्णकृपाश्रीमूर्ति भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी श्रील प्रभुपाद के चरणों पर सादर प्रणाम अर्पण करता हूँ। भगवान् श्रीकृष्ण के चरणकमलों का पूर्ण आश्रय लेने के कारण वे उन्हें अत्यन्त प्रिय हैं।

श्रीवार्षभानवीदेवी दयित दास (श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती के दीक्षा का नाम) के चरणकमलों पर मेरा प्रणाम है। वे श्रीमती राधारानी के विशेष कृपापात्र हैं तथा कृपावश सभी जीवों को श्रीकृष्ण सम्बन्धी विज्ञान प्रदान करते हैं।

जो श्रीचैतन्य महाप्रभु की करुणाशक्ति के मूर्तिमान स्वरूप हैं, जो श्रीराधाकृष्ण की माधुर्यभावयुक्त भक्ति प्रदान करते हैं, और जो श्रील रूप गोस्वामी प्रदत्त भक्तिमार्ग का पूर्ण पालन करते हैं, मैं उन श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद को सादर प्रणाम करता हूँ।

मैं बारम्बार श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद को सादर प्रणाम करता हैं, जो श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं के मूर्तिमान स्वरूप हैं। आप पतित जीवों का उद्धार करते हैं और श्रीरूपानुग तत्त्वज्ञान के विरुद्ध कुसिद्धांतरूपी अंधकार का विनाश करने वाले हैं।

श्रील गौरकिशोरदास बाबाजी प्रणति

जो साक्षात् वैराग्य और विप्रलम्भ-रस के सागरस्वरूप हैं, मैं उन श्रील गौरकिशोरदास बाबाजी महाराज को प्रणाम करता हूँ।

श्रील भक्तिविनोद ठाकुर प्रणति

जो श्रील रूप गोस्वामी के अनुयायियों में श्रेष्ठ हैं तथा श्रीचैतन्य महाप्रभु के शक्तिस्वरूप हैं, मैं उन सच्चिदानन्द श्रील भक्तिविनोद ठाकुर को सादर प्रणाम करता हूँ।

श्रील जगन्नाथदास बाबाजी प्रणति

मैं वैष्णवसार्वभौम श्रील जगन्नाथदास बाबाजी महाराज के चरणों पर सादर प्रणाम करता हैं, जो सम्पूर्ण वैष्णव समाज में आदरणीय हैं और श्रीचैतन्य महाप्रभु की जन्मभूमि के निर्देशक हैं।

श्रीवैष्णव प्रणाम

मैं सभी वैष्णवों के चरणकमलों पर प्रणाम करता हूँ, जो कल्पवृक्ष के समान सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं, करुणा के सागर हैं और पतित जीवों का उद्धार करने वाले हैं।

श्रीगौरांग महाप्रभु प्रणाम

हे परम उदार अवतार! श्रीचैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए आप स्वयं श्रीकृष्ण हैं। आपने श्रीमती राधारानी का गौरवर्ण स्वीकार किया है और आप सभी को श्रीकृष्ण-प्रेम वितरित कर रहे हैं। मैं आपको सादर नमन करता हूँ।

श्रीपंचतत्त्व प्रणाम

भक्तरूप (श्रीचैतन्य महाप्रमु), भक्तस्वरूप (श्रीनित्यानन्द), भक्तावतार (श्रीअद्वैताचार्य), भक्त (श्रीवास ठाकूर) और भक्तशक्ति (श्रीगदाधर), मैं इन पाँच तत्त्वों में प्रकट होने वाले भगवान् श्रीकृष्ण को सादर प्रणाम करता हूँ।

श्रीकृष्ण प्रणाम

हे कृष्ण! करुणासिंधु! आप दीनजनों के सुहृद, सृष्टि के स्रोत, गोप-गोपियों के स्वामी और विशेष रूप से श्रीमती राधारानी के अत्यन्त प्रिय हैं। आपके चरणकमलों पर मेरा सादर प्रणाम है।

श्रीसम्बन्धाधिदेव प्रणाम

मधुर लीलाओं में निमग्न श्रीराधा-मदनमोहन की जय हो, क्योंकि वे अत्यन्त दयालु हैं और मेरे जैसे पंगु, अज्ञानी और अल्पबुद्धि के रक्षक हैं। उनके दोनों चरणकमल ही मेरे सर्वस्व हैं और मैं उनकी वंदना करता हूँ।

श्रीअभिधेयाधिदेव प्रणाम

मैं श्री श्रीराधा-गोविन्ददेव का स्मरण करता हैं, जो परम रमणीय श्रीवृंदावन धाम में स्थित एक कल्पवृक्ष के नीचे दिव्य रत्नजड़ित भवन में मणियों के सिंहासर पर विराजमान हैं तथा अपनी प्रिय सखियों द्वारा सेवित हैं।

श्रीप्रयोजनाधिदेव प्रणाम

श्री श्रीराधागोपीनाथ सदैव हमारे कल्याणार्थ विराजमान रहें । वे राससम्बन्धित रसों के स्रोत हैं और वंशीवट पर अपनी बाँसुरी की ध्वनि से किशोरी गोपियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

श्रीराधा प्रणाम

हे तप्तकांचन गौरांगी (जिनकी अंगकान्ति सोने के समान है)! हे वृन्दावन की राजराजेश्वरी! हे वृषभानु पुत्री! हे हरिप्रिये! हे देवी! हे राधारानी! मैं बारम्बार आपको प्रणाम करता हूँ।

श्रीपंचतत्त्व मंत्र

मैं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु, श्रीनित्यानन्द प्रभु, श्रीअद्वैताचार्य प्रभु, श्रीगदाधर पण्डित प्रभु तथा श्रीवास प्रभु सहित अन्य सभी गौरभक्तों को प्रणाम करता हूँ। (इस मंत्र का जप करने से हमें हरे कृष्ण महामंत्र के जप में होने वाले अपराधों से मुक्त होने में सहायता मिलती है।)

हरे कृष्ण मंत्र

इस महामंत्र के उच्चारण से स्थापित दिव्य ध्वनितरंग हमारी कृष्णभावना को पुनर्जागृत करने का सर्वोत्कृष्ट उपाय है। चेतन आध्यात्मिक जीवात्मा होने के कारण हम सब मूल रूप से कृष्णभावनामृत हैं, किन्तु अनादि काल से जड़ पदार्थ से संग करने के कारण हमारी चेतना भौतिक वातावरण से दूषित हो गई है। इस भौतिक वातावरण, जिसमें हम रह रहे हैं, इसे माया कहा जाता है। माया का अर्थ है वह जो नहीं है। और वह भ्रम क्या है? भ्रम यह है कि हम सब भौतिक प्रकृति के स्वामी बनने में प्रयासरत हैं, जबकि वास्तव में हम उसके कड़े नियमों द्वारा बँधे हुए हैं। जब सेवक कृत्रिम रूप से सर्वशक्तिमान स्वामी की नकल करना चाहता है तो उसे भ्रम कहा जाता है। अतः, यद्यपि जीवन की इस दूषित अवस्था में हम प्रकृति पर विजय प्राप्त करने हेतु कठिन संघर्ष कर रहे हैं, फिर भी हम पूरी तरह उसी प्रकृति पर निर्भर हैं। भौतिक प्रकृति के प्रति यह भ्रामक संघर्ष हमारी कृष्णभावना के पुनर्जागरण द्वारा समाप्त किया जा सकता है।

कृष्णभावना मन पर कोई कृत्रिम आरोपण नहीं है। यह भावना तो जीव की मूल शक्ति है। जब हम अप्राकृत ध्वनितरंग को सुनते हैं तो यह भावना पुनर्जागृत हो जाती है। और प्रामाणिक सूत्रों ने इस युग के लिए इस पद्धति की संस्तुति की है। व्यवहारिक अनुभव से भी हम देख सकते हैं कि इस महामंत्र के उच्चारण से व्यक्ति तत्काल आध्यात्मिक स्तर से आ रहे दिव्य परमानन्द को प्राप्त कर सकता है। और जब व्यक्ति इन्द्रियों, मन और बुद्धि की अवस्थाओं को नियंत्रित करके वास्तव में आध्यात्मिक ज्ञान के स्तर पर होता है। तो वह दिव्य स्तर पर स्थित हो जाता है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का यह जप सीधे आध्यात्मिक स्तर से प्रसारित होता है और इसलिए इस महामंत्र की ध्वनि-तरंगे चेतना के निम्न स्तरों यथा ऐन्द्रिक, मानसिक तथा बौद्धिक स्तरों को पीछे छोड़ देती हैं। अतः इस महामंत्र का जप करने में इस मंत्र की भाषा आदि समझने की कोई आवश्यकता नहीं है और न ही मानसिक अटकलबाजी अथवा बौद्धिक ऊहापोह की आवश्यकता है। यह मंत्र सहज ही आध्यात्मिक स्तर से प्रवाहित होता है और इस प्रकार कोई भी व्यक्ति बिना किसी पूर्वयोग्यता के इसमें भाग ले सकता है और भावविभोर होकर नृत्य कर सकता है।

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