कृपा कर वैष्णव ठाकुर

कृपा कर वैष्णव ठाकुर

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कृपा कर वैष्णव ठाकुर

कृपा कर वैष्णव ठाकुर ।।

सम्बन्ध जानिया, भजिते-भजिते, अभिमान हउ दूर ।।१।।

‘आमि त वैष्णव, ए बुद्धि हुइले, अमानी ना ह ब आमि ।

प्रतिष्ठाशा आसि, हृदय दूषिबे, हइब निरयगामी ।।२।।

तोमार किमर, आपने जानिब, गुरु अभिमान त्यजि ।

तोमार उच्छिष्ट, पदजलरेणु, सदा निष्कपटे भजि ।।३।।

निजे श्रेष्ठ जानि, उच्छिष्टादि दाने, ह बे अभिमान भार ।

ताइ शिष्य तव, थाकिया सर्वदा, ना लइब पूजा का र ।।४।।

अमानी मानद, हुइले कीर्तने, अधिकार दिबे तुमि ।

तोमार चरणे, निष्कपटे आमि, काँदिया लुटिब भूमि ।।५।।

अनुवाद

।।१।। हे महान वैष्णवों, मुझपर कृपा करें! भगवान से अपने शाश्वत सम्बन्ध को जानकर उनका भजन करते-करते, कृपया मेरे मिथ्या अहंकार को आनावरित कर दीजिए।

।।२।। यदि मैं इस मानसिकता का विकास कर लें कि मैं वैष्णव हूँ तब मैं अमानी नहीं बन पाऊँगा या स्वयं के लिए न सम्मान मिलने की आशा नहीं कर सकेंगा। अतएव मानप्रतिष्ठा की आशा मुझे जकड लेगी तथा मेरे हृदय को दूषित कर देगी, जिसके फलस्वरुप, में नरक में जाऊँगा।

।।३।। में स्वयं को आध्यात्मिक गुरु समझने के अहंकार को त्याग दूंगा तथा स्वयं को आपका दास समझेंगा। मैं निष्कपटतापूर्वक सदैव आपका उच्छिष्ट, आपका पाद प्रक्षलित जल तथा आपकी चरणकमलों की रेणु को स्वीकार करुंगा।।

।।४।। यदि में इन उच्छिष्टों को यह सोचकर त्याग दें कि मैं एक उच्च भक्त हैं, तो मैं अहंकार से बोझिल हो जाउँगा। अतएव, में सदा-सर्वदा आपका विनम्र शिष्य बनकर रहूँगा तथा किसी से भी पूजन स्वीकार नहीं करूंगा।

।।५।। यदि मैं अपने लिए मान-सम्मान की इच्छा न रखते हुए, सदैव दूसरों का आदर करें तो आप मुझे भगवान् के पवित्र नामों का निरन्तर कीर्तन करने का अधिकार प्रदान करेंगे। अतएव में, निष्कपटतापूर्वक, रोते-रोते धरती पर लोटते हुए, आपके चरण-कमलों का आश्रय स्वीकार करता हूँ।

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