कबे हबे हेन दशा मोर

कबे हबे हेन दशा मोर

@Vaishnavasongs

AUDIO

कबे हबे हेन दशा मोर

कबे हबे हेन दशा मोर ।

त्यजि जड़ आशा, विविध बन्धन

छाडिब संसार घोर ।।१।।

वृन्दावनभेढे, नवदीप धामे,

बाब्धिब कुटिरखानि।।

शचीर नन्दन, चरण आश्रय

करिब सम्बन्ध मानि ।।२।।

जाह्नवी-पुलिने, चिन्मय-कानने,

बसिया विजन-स्थले।।

कृष्णनामामृत, निरन्तर पिब,

डाकिब ‘गौरांग' बले ।।३।।

हा गौर-निताई, तोरा दुटि भाई,

पतित जनेर बन्धु ।

अधम पतित, आमि हे दुर्जन,

हओ मोरे कृपासिन्धु ।।४।।

काँदिते काँदिते, शोलक्रोश-धाम

जाह्नवी उभयकुले।

भ्रमिते भ्रमिते, कभु भाग्यफले

देखि किछु तरुमूले ।।५।।

हा हा मनोहर, कि देखिनु आमि,

बलिया मूर्छित हब ।

सम्वित पाइया, काँदिब गोपने

स्मरि दुहुँ कृपा-लव ।।६।।

अनुवाद

।।१।। ओह! कब मेरी ऐसी स्थिती होगी? भौतिक इच्छायें त्यागकर जो अनेक प्रकार के बन्धन उत्पन्न कराती हैं एवं भयानक भौतिक जगत् की आसक्ति को त्यागकर ...

।।२।। ... मैं श्री नवद्विप धाम में, जो वृन्दावन से अभिन्न है, कुटिया बनाऊँगा। शचीनन्दन से अपना सम्बन्ध समझने के पश्चात्, मैं उनके चरणकमलों की शरण ग्रहण करूंगा।

।।३।। मैं एक अलौकिक वन में, गंगातट के निकट एक निर्जन स्थान में बैठेंगा। मैं निरन्तर कृष्ण के पवित्र नामों के अमृत का पान करूंगा तथा उच्च स्वर में गौरांग' कहकर पुकारूंगा।

।।४।। हे भगवान् गौरांग, नित्यानंद, आप दोनों भाई पतितात्माओं के मित्र हैं। मैं सर्वाधिक निकृष्ट तथा पापी व्यक्ति हूँ। मुझ पर कृपा करें।

।।५।। निरन्तर अश्रुधारा प्रवाहित करते हुए, मैं समूचे नवद्वीप का भ्रमण कराँगा जो कि बत्तीस वर्ग-मील में तथा गंगा नदी के दोनों ओर स्थित है। भ्रमण करते करते सौभाग्यवश, आकस्मिक ही मैं एक वृक्ष के नीचे ओट में कुछ देगा।

।।६।। हे सर्वाधिक मनोहर! यह आज मैंने क्या देख लिया? यह कहते-कहते, मैं अचेत हो जाऊँगा। चेतनावस्था प्राप्त करने के पश्चात् मैं उस निर्जन स्थान से उनकी अहैतुकी कृपा का स्मरण करते-करते रोऊँगा ।

Report Page