जे आनिल प्रेम-धन

जे आनिल प्रेम-धन

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जे आनिल प्रेम-धन

जे आनिल प्रेम-धन करुणा प्रचुर ।

हेन प्रभु कोथा गेला आचार्य ठाकुर ।।१।।

काँहा मोर स्वरूप-रूप काँहा सनातन ।

काँहा दास रघुनाथ पतित पावन ।।२।।

काँहा मोर भट्टयुग काँहा कविराज ।

एक काले कोथा गेला गोरा नटराज ।।३।।

पाषाणे कुटिबो माथा, अनले पशिब ।

गौरांग गुणेर निधि कोथा गेले पाबो ।।४।।

से सब संगीर संगे जे कैला विलास ।।

से संग ना पाइया काँदे नरोत्तम दास ।।५।।

१. दिव्य प्रेम का धन लेकर आने वाले तथा करुणा के असीमित भण्डार श्रील श्रीनिवास आचार्य ठाकुर कहाँ चले गये?

२. मेरे श्रील स्वरूप दामोदर और श्रील रूप गोस्वामी कहाँ हैं ? श्रील सनातन गोस्वामी कहाँ हैं? और पतित-पावन श्रील रघुनाथदास गोस्वामी कहाँ हैं?

३. मेरे श्रील रघुनाथभट्ट और श्रील गोपालभट्ट गोस्वामी कहाँ है? श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी कहाँ हैं? महान् नर्तक श्रीमन् गौरांग महाप्रभु एकाएक कहाँ चले गये?

४. मैं अपना सिर चट्टान पर पीट-पीटकर फोड़ दूंगा और अग्नि में प्रविष्ट हो जाऊँगा । सभी दिव्य गुणों के निधिस्वरूप श्रीगौरांग महाप्रभु को अब मैं कहाँ पाऊँगा? ।

५. श्रीगौरांग महाप्रभु एवं उनके साथ लीला करने वाले सभी संगियों के संग से वंचित नरोत्तमदास केवल रो रहे हैं।

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