हरि हरि! कबे मोर हइबे सुदिने

हरि हरि! कबे मोर हइबे सुदिने

@Vaishnavasongs

AUDIO

हरि हरि! कबे मोर हइबे सुदिने

हरि हरि! कबे मोर हइबे सुदिने।

केलि-कौतुक-रङ्गे करिब सेवने ।।१।।

ललिता-विशाखा-सने, यतेक सखिर गणे,

मंडली करिब दोंह मेलि।।

राइ-कानु करे धरि, नृत्य करे फिरि' फिरि ।

निरखी गौङाब कुतूहली ।।२।।

अलस विश्राम-घरे, गोवर्धन-गिरिवरे,

राइ कानु करिबे शयने।।

नरोत्तमदास कय, एइ येन मोर हय,

अनुक्षण चरण-सेवने ।।३।।

अनुवाद

।।१।। हे कृष्ण! वह शुभ दिन कब आएगा कि आपकी अपनी गोपनीय लीलाओं के समय मैं आपकी सेवा कर पाऊँगा।

।।२।। श्रीश्री राधा-कृष्ण को बीच में रखकर ललिता-विशाखा तथा उनकी सखियों के साथ मिलकर मैं घेरा बनाऊँगा। श्रीराधा-माधव हाथ में हाथ पकड़कर घूम फिर कर नृत्य कर रहे हैं। यह दृश्य मैं कब अपने आँखों से कौतूहलपूर्वक देखेंगा ।

।।३।। तथा कुछ समय पश्चात् श्रीश्री राधा-कृष्ण थक कर गोवर्धन पर्वत की । कन्दरारूप विश्राम गृह में वे दोनों शयन करेंगे। नरोत्तमदास ठाकुर उनके श्री चरणों की सेवा प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं।

Report Page