हरि बोलो-हरि बोलो-हरि बोलो भाइरे

हरि बोलो-हरि बोलो-हरि बोलो भाइरे

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हरि बोलो-हरि बोलो-हरि बोलो भाइरे

हरि बोलो-हरि बोलो-हरिबोलो भाइरे ।

हरिनाम आनियाछे गौराङ्ग निताईरे ।।१।।

(मोदेर दुःख देखेरे)

हरिनाम बिना जीवेर अन्य धन नाई रे ।

हरिनामे शुद्ध हलो जगाइ-माधाइ रे ।।२।।

(बडो पापी छिल रे)

मिछे मायाबद्ध ह'ये जीवन काटाइ रे ।

(आमि आमार बले रे)

आशावशे घुरे-घुरे आर कोथा याइरे ।।३।।

(आशार शेष नाइ रे)

हरि बोले देओ भाइ आशार मुख छाइ रे ।

(निराश त’ सुख रे)

भोग-मोक्ष-वांछा छाडि हरिनाम गाइरे ।।४।।

(शुद्ध सत्त्व ह ये रे)

ना चेयेओ नामेर गुणे ओ सब फल पाइरे।

(तुच्छ फलेर प्रयास छेडे रे)

विनोद बोले याइ ल ये नामेर बालाइरे ।।५।।

(नामरे बालाइ छेडे रे)

अनुवाद

।।१।। भाइयों हरि बोलो, हरि बोलो, हरि बोलो। भगवान चैतन्य एवं भगवान नित्यानन्द ने इस परम पवित्र नाम को लाए है (हमारे दुःख को देखकर)।।

।।२।। इस परमपवित्र नाम के बिना आत्मा के लिए और कोई ऐसा धन नही है। इस परमपवित्र नाम की कृपा से जगाई, मधाई जैसे भयंकर पापी भी शुद्ध हो गये (वे लोग भयंकर पापी थे)।

।।३।। मैं माया के कपट से जिन्दगी को यूँ गॅवाया (हमेशा मैं और मेरा कहता रहा) मुखों कि तरह इधर-उधर अपनी मामुली इच्छाओं के द्वारा सञ्चलित होकर भटकता रहा, इसके बाद कहाँ जाऊंगा? (भौतिक इच्छाओं का कोई अन्त नही रहता)

।।४।। भाइयों, भौतिक इच्छाओं को देखते हुए हरि बोलो (शाश्वत आनन्द को पाने के लिए मामुली भौतिक इच्छाओं से मुक्त होना होगा) मामुली आनन्द एवं मोक्ष की इच्छा को त्यागते हुए मैं परमपुरुष भगवान के परमपवित्र नाम का जप करुंगा (शुद्ध होकर एवं दिव्य भाव में स्थित होकर)।

।।५।। परमपवित्र नाम की शक्ति एवं दिव्य गुणों के कारण मैं दिव्यभाव में लीन होकर नृत्य करता हूँ और इसीलिए मैं यह परिणाम को समक्ष पा रहा हूँ (सभी असमञ्जस भौतिक इच्छाओं के प्रभाव एवं परिणामों को त्यागते हुए) भक्तिविनोद कह रहे है की सिर्फ परमपवित्र नाम के जप करके मैंने सभी भौतिक दोषों पर विजय प्राप्त कियी है। इस परम पवित्र नाम के बल पर मैंने सारे अपराधों को त्याग दिया है।

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