श्री गुरुचरण पद्म - श्रीगुरुवंदना

श्री गुरुचरण पद्म - श्रीगुरुवंदना

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श्रीगुरुवंदना

श्री गुरुचरण पद्म, केवल भकति-सद्म,

वन्दो मुइ सावधान मते ।

याँहार प्रसादे भाई, ए भव तरिया याइ,

कृष्ण प्राप्ति हय याँहा हइते ।।१।।

गुरुमुख पद्म वाक्य, चित्तेते करिया ऐक्य,

आर न करिह मने आशा।

श्रीगुरुचरणे रति, एइ से उत्तम-गति,

ये प्रसादे पूरे सर्व आशा ।।२।।

चक्षुदान दिलो येइ, जन्मे जन्मे प्रभु सेइ,

दिव्य ज्ञान हृदे प्रकाशित।

प्रेम-भक्ति याँहा हइते, अविद्या विनाश जाते,

वेदे गाय याँहार चरित ।।३।।

श्रीगुरु करुणा-सिन्धु, अधम जनार बंधु,

लोकनाथ लोकेर जीवन।।

हा हा प्रभु कोरो दया, देह मोरे पद छाया,

एबे यश घुषुक त्रिभुवन ।।४।।

१. आध्यात्मिक गुरु के चरणकमल ही एकमात्र साधन हैं जिनके द्वारा हम शुद्ध भक्तिमय सेवा प्राप्त कर सकते हैं। मैं उनके चरणकमलों में अत्यन्त भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक नतमस्तक होता हैं। उनकी कृपा से जीव भौतिक क्लेशों के महासागर को पार कर सकता है तथा श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त कर सकता है।

२. मेरी एकमात्र इच्छा है कि उनके मुखकमल से निकले हुए शब्दों द्वारा अपनी चेतना को शुद्ध करूं। उनके चरणकमलों में अनुराग ऐसी सिद्धि है जो समस्त मनोरथों को पूर्ण करती है।

३. वे मेरी बन्द आँखों को खोलते हैं तथा मेरे हृदय में दिव्य ज्ञान भरते हैं। जन्मजन्मान्तरों में वे मेरे प्रभु हैं। वे प्रेमाभक्ति प्रदान करते हैं और अविद्या का विनाश करते हैं। वैदिक शास्त्र उनके चरित्र का गान करते हैं।

४. हे गुरुदेव! करुणासिन्धु तथा पतितात्माओं के मित्र! आप सबके गुरु एवं सभी लोगों के जीवन हैं । हे गुरुदेव! मुझपर दया कीजिए तथा मुझे अपने चरणकमलों की छाया दीजिए। आपका यश तीनों लोकों में फैला हुआ है।

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