गोपीनाथ, मम निवेदन शुनो

गोपीनाथ, मम निवेदन शुनो

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गोपीनाथ (भाग १)

गोपीनाथ, मम निवेदन शुनो

विषयी दुर्जन, सदा काम-रत,

किछु नाहि मोर गुण ।।१।।

गोपीनाथ, आमार भरसा तुमि

तोमार चरणे, लोइनु शरण,

तोमार किंकर आमि ।।२।।

गोपीनाथ, केमोने शोधिबे मोरे

ना जानि भकति करमे जड-मति,

पड़ेछि संसार-घोरे ।।३।।

गोपीनाथ, सकलि तोमार माया

नाहि मम बल, ज्ञान सुनिर्मल,

स्वाधीन नहे ए काया ।।४ ।।

गोपीनाथ, नियत चरणे स्थान

मागे ए पामर, काँदिया काँदिया,

करहे करुणा दान ।।५।।

गोपीनाथ, तुमि तो’ सकलि पारो

दुर्जने तारिते, तोमार शकति,

के आछे पापीर आर ।।६।।

गोपीनाथ, तुमि कृपा-पाराबार

जीवेर कारणे, आसिया प्रपञ्चे,

लीला कोइले सुविस्तार ।।७।।

गोपीनाथ, आमि कि दोषे दोषी

आसुर सकल, पाइलो चरण,

विनोदे थाकिलो ब'सि' ।।८।।

१. हे गोपीनाथ! कृपा करके मेरा एक निवेदन सुनें । मैं अत्यन्त विषयी, दुर्जन तथा काम के वशीभूत हूँ। मेरे अन्दर किसी प्रकार का कोई गुण नहीं है।

२. मैं तो आपका दास हूँ। मैंने आपके चरणकमलों की शरण ग्रहण की है, क्योंकि मुझे केवल आप पर भरोसा है।

३. हे गोपीनाथ! आप किस प्रकार मुझे सुधारेंगे, क्योंकि मैं भक्ति के विषय में कुछ नहीं जानता तथा मेरी जड़मति सांसारिक कर्मों में रत है, जिसके फलस्वरूप मैं इस घोर संसार में पड़ा हुआ हूँ।

४. हे गोपीनाथ! यह सब आपकी माया है। मुझमें इतना बल और ज्ञान नहीं है कि मैं इसे पार कर सकें और न ही मेरा शरीर स्वतन्त्र है अर्थात् यह मेरे पूर्वजन्मों के अधीन है।

५. अतः हे गोपीनाथ! यह पतित रोते-रोते आपसे यही निवेदन करता है कि कृपया इसे अपने चरणकमलों में थोडा स्थान प्रदान करें।

६. आप सबकुछ करने में समर्थ हैं। आप तो दुर्जनों का भी उद्धार कर सकते हैं। अतः मुझ पापी का उद्धार करें क्योंकि आपके अतिरिक्त इस पापा का और है ही कौन ?

७. हे गोपीनाथ! आपकी कृपा तो असीम है। दयावश जीवों का उद्धार करने के लिए आप इस संसार में आकर अपनी मनोहर लीलाओं का विस्तार करते हैं।

८. हे गोपीनाथ! मैं पापियों में भी पापी हूँ। यहाँ तककि असुरों ने भी आपके चरणकमलों को प्राप्त कर लिया है किन्तु भक्तिविनोद ठाकुर इस संसार में ही पड़ा रह गया है।

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