गाय गोरा मधुर स्वरे

गाय गोरा मधुर स्वरे

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गाय गोरा मधुर स्वरे

गाय गोरा मधुर स्वरे

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

गृहे थाको, वने थाको, सदा ‘हरि बोले डाको

‘सुखे दुःखे भुलो ना’ को, वदने हरि - नाम कोरो रे ।।१।।

माया जाले बद्ध होये, आछो मिछे काज लोये

एखोन चेतन पेये, ‘राधा - माधव' नाम बोलो रे ।।२।।

जीवन होइलो शेष, ना भजिले हृषीकेश

भकतिविनोदोपदेश, एकबार नाम - रसे मातो रे ।।३।।

गाय गोरा मधुर स्वरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।

।।१।। अहो ! स्वयं भगवान श्रीगौरसुन्दर अत्यन्त ही सुमधूर स्वरसे हरे कृष्णा महामंत्रका कीर्तन कर रहे हैं। अतः हे भाइयो ! आप लोग भी घर में रहे या वन में अर्थात् गृहस्थाश्रम में रहें या त्यागी आश्रम में अथवा सुख में रहें या दुःख में सदैव भगवान का कीर्तन करें।

।।२।। आप लोग माया जाल में आबद्ध होने के कारण व्यर्थ ही सांसारिक कामों में व्यस्त हैं। अब तो होश में आओ तथा राधामाधवका नाम लो।

।।३।। अरे ! व्यर्थ के कार्यों में तुम्हारा तो सारा जीवन ही बीत गया, परन्तु तुमने कभी हृषीकेश (कृष्ण) का भजन नहीं किया। भक्तिविनोद ठाकूर यही उपदेश प्रदान कर रहे है-अरे भाइयो ! एक बार तो नामरस में निमग्न हो जाओ।

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