गौरांग' बोलिते ह'बे

गौरांग' बोलिते ह'बे

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गौरांग' बोलिते ह'बे

गौरांग बोलिते ह'बे पुलक-शरीर ।

‘हरि हरि' बोलिते नयने ब'बे नीर ।।१।।

आर क’बे निताईचांदेर करुणा होईबे ।

संसार-वासना मोर कबे तुच्छ हवे ।।२।।

विषय छाड़िया कबे शुद्ध ह'बे मन ।

कबे हाम हेरबो श्रीवृंदावन ।।३।।

रूप-रघुनाथ-पदे होइबे आकुति ।

कबे हाम बुझबो से युगल-पीरिति ।।४।।

रूप-रघुनाथ-पदे रहु मोर आश ।

प्रार्थना करये सदा नरोत्तम-दास ।।५।।

१. वह दिन कब आयेगा जब केवल “गौरांग' बोलते ही मेरा शरीर पुलकित हो उठेगा तथा “हरि, हरि' बोलने पर मेरी आँखों से अश्रुधार प्रवाहित होने लगेगी?

२. कब श्रीनित्यानन्द की मुझपर कृपा होगी, जिसके द्वारा इस संसार को भोगने की मेरा इच्छा समाप्त हो जायेगी ?

३. सांसरिक विषयभोगों को त्यागकर कब मेरा मन शुद्ध होगा? कब मैं वास्तविक रूप से श्रीवृन्दावन धाम के दर्शन कर पाऊँगा?

४. श्रील रूप गोस्वामी और श्रील रघुनाथदास गोस्वामी के चरणकमलों के प्रति कब मेरा अनुराग उत्पन्न होगा? कब मैं परम युगल श्री श्रीराधा-कृष्ण के प्रेम को समझ पाऊँगा?

५. नरोत्तमदास एकमात्र यही प्रार्थना करते हैं कि श्रीरूप और श्रीरघुनाथ के चरणकमलों में उनकी यह आशा बनी रहे।

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