जय जय गौराचाँदेर - गौर आरती

जय जय गौराचाँदेर - गौर आरती

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गौर आरती

जय जय गौराचाँदेर आरतिक शोभा

जाह्नवी तट वने जगमन लोभा ।।१।।

दक्षिणे निताईचाँद बामे गदाधर

निकटे अद्वैत श्रीनिवास छत्रधर ।।२।।

बसियाछे गौराचाँदेर रत्न-सिंहासने

आरति करेन ब्रह्मा-आदि देवगणे ।।३।।

नरहरि आदि कोरि चामर दुलाय

सञ्जय मुकुंद वासुघोष आदि गाय ।।४।।

शंख बाजे घण्टा बाजे, बाजे करताल

मधुर मृदंग बाजे परम रसाल ।।५।।

बहुकोटि चन्द्र जिनि वदन उज्वल

गलदेशे वनमाला करे झलमल ।।६।।

शिव-शुक नारद प्रेमे गद्गद् ।।

भकति-विनोद देखे गौरार सम्पद।।७।।

१. श्रीचैतन्य महाप्रभु की सुन्दर आरती की जय हो, जय हो। यह गौर-आरती गंगा के तट पर स्थित एक कुंज में हो रही है तथा संसार के समस्त जीवों को आकर्षित कर रही है।

२. उनके दाहिनी ओर नित्यानन्द प्रभु हैं तथा बाईं ओर श्रीगदाधर हैं। श्रीचैतन्य महाप्रभु निकट श्रीअद्वैत प्रभु तथा छत्र धारण किये श्रीनिवास प्रभु खड़े हैं।

३. श्रीचैतन्य महाप्रभु सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं तथा ब्रह्माजी उनकी आरती कर रहे हैं। इस अवसर पर अन्य देवगण भी उपस्थिति हैं।

४. श्रीचैतन्य महाप्रभु के अन्य पार्षद जैसे नरहरि आदि चाँवर डुला रहे हैं तथा कुशल गायक जैसे मुकुन्द एवं वासुघोष कीर्तन कर रहे हैं।

५. शंख, करताल एवं मृदंग की मधुर ध्वनि सुनने में अत्यन्त प्रिय लग रही है।

६. श्रीचैतन्य महाप्रभु का मुखमण्डल करोड़ो चन्द्रमा की भाँति दैदीप्यमान हो रहा है तथा उनके गले में वनफूलों की माला झलमल कर रही है।

७. महादेव शिवजी, श्रीशुकदेव गोस्वामी तथा श्रील नारदमुनि के कण्ठ प्रेममय दिव्य आवेग से अवरुद्ध हैं। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं, “तनिक श्रीचैतन्य महाप्रभु का ऐश्वर्य तो देखो !

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