एमन दुर्मति

एमन दुर्मति

@Vaishnavasongs

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एमन दुर्मति

(प्रभु हे)! एमन दुर्मति,

संसार-भितरे, पडिया आछिनु आमि।

तव निज-जन, कोन महाजने,

पाठाइया दिले तुमि ।।१।।

दया करि मोरे, पतित देखिया,

कहिल आमारे गिया ।

ओहे दीन जन, सुन भाल कथा,

उल्लसित हबे हिया ।।२।।

तोमारे तारिते, श्रीकृष्ण चैतन्य,

नवद्वीपे अवतार ।।

तोमा हेन कत, दीन हीन जने,

करिलेन भवपार ।।३।।

वेदेर प्रतिज्ञा, राखिबार तरे,

रुक्मवर्ण विप्रसूत ।

महाप्रभु नामे, नदीया माताय,

संगे भाई अवधूत ।।४।।

नंदसुत जिनि, चैतन्य गोसाइ,

निज-नाम करि दान ।

तारिल जगत्, तुमिओ जाइया,

लह निज परित्राण ।।५।।

से कथा सुनिया, आसियाछि नाथ,

तोमार चरणतले ।

भकतिविनोद, काँदिया काँदिया,

आपन काहिनी बले ।।६।।

१. हे भगवन्! अपने दुष्ट मन के कारण मैं दुमर्ति इस संसार में गिर पड़ा, किन्तु आपने अपने एक शुद्ध महान् भक्त को मेरी रक्षा हेतु भेज दिया ।।

२. मुझ पतित को देखकर मुझपर दया दिखाते हुए उन्होंने कहा, “हे दीन आत्मा, मैं तुम्हें एक अच्छी बात बताने जा रहा हूँ, जिससे सुनकर तुम्हारा हृदय उल्लसित हो जायेगा ।''

३. “तुम्हारा उद्धार करने के लिए श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु नवद्वीप में अवतरित हुए हैं। उन्होंने तुम जैसे अनेक पतित जीवों को संसार रूपी समुद्र के पार लगा दिया है।

४. “वेदों में की गई अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वे गौरवर्ण लेकर एक ब्राह्मणपुत्र के रूप में अवतरित हुए हैं। उनका नाम महाप्रभु है और वे अपने भाई अवधूत के साथ आये हैं। दोनों ने मिलकर पूरी नदिया को दिव्य उन्माद से अभिभूत कर दिया है। ।

५. “श्रीचैतन्य गोसाईं स्वयं नन्द महाराज के पुत्र श्रीकृष्ण हैं। उन्होंने मुक्त रूप से अपने नामों का वितरण करके सम्पूर्ण जगत् का उद्धार किया है। तुम भी जाकर अपनी मुक्ति प्राप्त कर सकते हो ।”

६. हे भगवन् ! उन शब्दों को सुनकर भक्तिविनोद रोता-रोता आपके चरणकमलों के तलवों की शरण लेता है और अपने जीवन की कहानी आपको सुनाता है।

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