एखन बुझिनू प्रभू!

एखन बुझिनू प्रभू!

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एखन बुझिनू प्रभू!

एखन बुझिनू प्रभू! तोमार चरण ।।

अशोकाभयामृत-पूर्ण सर्व-खण।।१।।

सकल छाडिया तुआ चरणकमले ।

पडियाचि आमि नाथ! तव पद-तले।।२।।

तव पाद-पद्म नाथ! रखिबे आमारे।

आर राखा-कर्ता नाहि ए भव-संसारे।।३।।

आमि तव नित्य-दास जानिनु ए-बार।

आमार पालन-भार एखन तोमार।।४।।

बड़ दुःख पाइयाचि स्वतंत्र जीवने।

दुःख दूरे गेलो ओ पद-वरणे।।५।।।

जे पद लागिया रमा तपस्या करिला।

जे-पद पाइया शिव शिवत्व लमिला।।६।।

जे-पद लभिया ब्रह्मा कृतार्थ होइला।

जे-पद नारद मुनि हृदये धरिला ।।७।।

सेइ से अभय पद शिरेते धरिया।

परम-आनन्दे नाचि पद-गुण गाइया।।८।।

संसार-विपद होइते अवश्य उद्धार।

भकतिविनोद, ओ-पद करिबे तोमार।।९।।

१. हे प्रभु! मैं अब समझ गया हूँ कि आपके चरण पूर्ण अमृत से भरे हैं तथा समस्त शोक और भय को नष्ट करने वाले हैं।

२. अपना सर्वस्व उन चरणकमलों पर समर्पित करके मैं आपके पादपद्मों की शरण ग्रहण करता हूँ।

३. हे नाथ! आपके चरणकमल निश्चित् ही मेरी रक्षा करेंगे। इस जन्म-मृत्यु के संसार में उनके अतिरिक्त मेरा अन्य कोई संरक्षक नहीं है।

४. अन्ततः मैं जान गया कि मैं आपका नित्य दास हूँ। अब मेरे पालन का पूरा भार आपके ऊपर है।

५. आपसे स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करके मैंने दुःख के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं पाया है। किन्तु अब आपके चरणकम्लों को स्वीकार करने से मेरे सभी दुःख दूर चले गये हैं।

६. आपके चरणकमलों पर स्थान प्राप्त करने के लिए लक्ष्मीजी ने कठोर तपस्या की। आपके चरणकमलों को प्राप्त करने पर ही शिवजी को अपना शिवत्व प्राप्त हुआ।

७. आपके चरणकमल प्राप्त होने पर ही ब्रह्माजी की इच्छायें पूरी हुईं। इन्हीं चरणकमलों को श्रीनारदमुनि सदैव अपने हृदय में धारण करते हैं।

८. अभय प्रदान करने वाले उन्हीं चरणकमलों को मैं अपने सिर पर धारण करता हूँ और परम आनन्द में नाचते हुए उनकी महिमायें गाता हूँ।

९. आपके चरणकमल निश्चित् ही भक्तिविनोद का इस संसार की विपदाओं से उद्धार करेंगे।

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