दयाल निताई चैतन्य

दयाल निताई चैतन्य

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दयाल निताई चैतन्य

‘दयाल निताई चैतन्य' बोले’ नाच रे आमार मन ।

नाच रे आमार मन, नाच रे आमार मन।।१।।

(एमन, दयाल तो नाइ हे, मार खेये प्रेम देय)

(ओरे) अपराध दुरे जाबे, पाबे प्रेमधन ।।

(ओ नामे अपराध-विचार तो नाइ हे)

(तखोन) कृष्ण-नामे रुचि ह'बे घुचिबे बन्धन ।।२।।

(कृष्ण-नामे अनुराग तो ह'बे हे)

(तखोन) अनायासे सफल ह'बे जीवेर जीवन ।

(कृष्ण-रति विना जीवन तो मिछे हे)

(शेषे) वृंदावने राधा-श्यामेर पाबे दर्शन ।

(गौर-कृपा ह’ले हे)

१. परम दयालु श्रीनित्यानन्द प्रभु और श्रीचैतन्य महाप्रभु के नामों का उच्चारण करते हुए हे मेरे मन तू नाच! हे मन तू नाच! बस नाच!

२. अरे! नित्यानन्द प्रभु जैसा दयालु व्यक्ति अन्य कहीं नहीं मिलेगा। उन्होंने जगाइ-मधाइ से मार खाकर भी उन्हें भगवद्प्रेम दिया! हे मन, जब तुम्हारे अपराध नष्ट हो जायेंगे तो तुम्हें भगवद्प्रेम का खजाना मिलेगा । किन्तु चैतन्य और निताई के नाम-कीर्तन में अपराधों का कोई विचार नहीं किया जाता! एक बार यदि तुम श्रीकृष्ण के नामों का आस्वादन कर लोगे तो इस संसार के बन्धन समाप्त हो जायेंगे।

३. अरे! जब श्रीकृष्ण के नामों के प्रति आसक्ति होगी तो जीव का जीवन अत्यन्त सहजता से सफल बन जायेगा! किन्तु श्रीकृष्ण के प्रति आसक्ति के बिना जीवन व्यर्थ है! यदि तुम्हें श्रीगौरहरि की कृपा मिल जाती है तो जीवन के अन्त में तुम्हें श्रीराधाश्याम के मधुर दर्शन मिलेंगे!

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