धन मोर नित्यानंद

धन मोर नित्यानंद

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धन मोर नित्यानंद

धन मोर नित्यानंद, पति मोर गौरचंद्र,

प्राण मोर युगल-किशोर ।

अद्वैत आचार्य बल, गदाधर मोर कुल,

नरहरि विलास-एइ मोर ।।१।।

वैष्णवेर पद-धूलि, ताहे मोर स्नान केलि,

तर्पण मोर वैष्णवेर नाम ।।

विचार करिया मने, भक्ति-रस आस्वादने,

मध्यस्थ श्रीभागवत पुराण ।।२।।

वैष्णवेर उच्छिष्ट, ताहे मोर मन निष्ठा,

वैष्णवेर नामेते उल्हास ।।

वृंदावने चबुतारा, ताहे मोर मन घेरा,

कहे दीन नरोत्तम दास ।।३।।

१. श्रीनित्यानन्द प्रभु मेरा एकमात्र धन है। श्रीगौरचन्द्र मेरे स्वामी हैं। युगलकिशोर श्रीराधा-कृष्ण मेरे जीवन और प्राण हैं। श्रीअद्वैताचार्य मेरा बल हैं। श्रीगदाधर पण्डित मेरा कुल हैं और श्रील नरहरि सरकार मेरा एकमात्र आनन्द हैं।

२. वैष्णवों की पदधूलि में स्नान करना मेरा एकमात्र सुख है और वैष्णवों के नाम का उच्चारण मेरा तर्पण है। अपने मन में विचार करके मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि भक्तिरस का आस्वादन करने के लिए श्रीमद्भागवतम् सर्वोत्तम माध्यम है।

३. मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरा मन वैष्णवों का उच्छिष्ट स्वीकारने में एकनिष्ठ रहे और वैष्णवों का नाम सुनने मात्र से मैं उल्लसित हो जाऊँ। श्रील नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं, “वृन्दावन के चबुतरे ने मेरा हर लिया है।”

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