बोड़ो सुखेर खबर गाय

बोड़ो सुखेर खबर गाय

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बोड़ो सुखेर खबर गाय

बोड़ो सुखेर खबर गाय,

सुरभि कुंजेते नामेर हाथ् खुले'छे, खोद निताई ।।

बोड़ो मोजार कोता ताय

श्रद्धा मूल्य शुद्धनाम सेइ हाटेते बिकाय ।।

यत भक्त वृन्दबसि'

अधिकारी देखे' नाम बेच्छे दारो कसि ।।

यदि नाम किंबे भाई

आमार संगे चलो, महाजनेर काछे जाइ ।।

तुमि किंबे कृष्णनाम

दस्तुरि लइबो आमि पूर्ण हबे काम ।।

बोड़ो दयाल नित्यानन्द

श्रद्धामात्र लेय देन परम आनन्द ।।

एक बार देखले चख्शे जल

“गौर' बले निताई देन सकल सम्बल ।।

देन शुद्ध कृष्ण शिक्षा

जाति, धन, विद्या, बल न करे अपेक्षा ।।

अमनि छारि’ माया जाल

गृहे थाको, वने थाको, न थाके जंजाल ।।

आर नाइक कलिर भय

आचंडाले देय नाम निताई दयामय ।।

भक्तिविनोद डाकि कय

निताइ चरण बिना आर नाहि आश्रय ।।

१. मैं अत्यन्त आनन्द में गा रहा हूँ! श्रीनवद्वीप के सुरभि कुंज में हरिनाम का बाजार खुला है और श्रीनित्यानन्द प्रभु उसके मालिक हैं।

२. उस आनन्द के बाजार में ऐसे अद्भुत कार्य हो रहे हैं! नित्यानन्द प्रभु शुद्ध हरिनाम वितरित कर रहे हैं और उसका मूल्य है आपकी श्रद्धा ।

३. भक्तों को उत्सुकता से हरिनाम खरीदते देखकर पहले नित्यानन्द प्रभु उनकी योग्यताओं को परखेंगे और फिर उसके दाम को भाव-तोल करके वे उसे बेचेंगे।

४. हे मेरे मित्रों! यदि आप इस शुद्ध हरिनाम को खरीदना चाहते हो तो बस मेरे साथ आओ, क्योंकि मैं इन नित्यानन्द महाजन से मिलने जा रहा हूँ।

५. इस प्रकार तुम्हें शुद्ध हरिनाम प्राप्त हो जायेगा। इसके लिए मैं अपनी कमीशन भी लूंगा और इस प्रकार हम तीनों की इच्छायें पूरी हो जायेंगी।

६. श्रीनित्यानन्द प्रभु इतने दयालु हैं कि वे हरिनाम में व्यक्ति की श्रद्धा को स्वीकार करके उसे सर्वोच्च आनन्द प्रदान करते हैं।

७. जब निताई देखते हैं कि “गौर” नाम बोलते समय किसी की आँखों में आँसु आ रहे हैं, वे तुरन्त उसकी सहायता करते हैं और उसे सब दिव्य ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।

८. वे उस व्यक्ति को भगवद्गीता और भागवतम् में दी गई श्रीकृष्ण की शुद्ध शिक्षायें प्रदान करते हैं। इस अचिन्त्य कृपा को प्रदान करते समय वे किसी की जाति, धन, भौतिक ज्ञान और शारीरिक क्षमता नहीं देखते।

९. हे मित्रों, कृपया माया के जंजाल को त्याग दो । यदि आप गृहस्थ हैं तो अपने घर पर ही रहो, यदि आप वैरागी हैं तो जंगल में रहो । कहीं भी रहो, कोई भी तुम्हें इस जंजाल में बाँध नहीं पायेगा ।

१०. हमें कलि से डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सर्वाधिक कृपामय श्रीनित्यानन्द प्रभु बिना भेदभाव के सबको - यहाँ तककि सबसे अधम व्यक्ति को भी - हरिनाम दे रहे हैं।

११. भक्तिविनोद उच्चस्वर में घोषणा करते हैं, “नित्यानन्द प्रभु के चरणकमलों के अतिरिक्त अन्य कोई आश्रय नहीं है।''

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