भुलिया तोमारे, संसारे आसिया

भुलिया तोमारे, संसारे आसिया

@Vaishnavasongs

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भुलिया तोमारे

भुलिया तोमारे, संसारे आसिया,

पेये नानाविध व्यथा।

तोमार चरणे, आसियाछि आमि,

बलिब दुःखेर कथा।।१।।

जननी-जठरे, छिलाम जखन,

विषम बन्धनपाशे।

एकबार प्रभु, देखा दिया मोरे,

वञ्चिले ए दीन दासे।।२।।

तखन भाविनु, जनम पाइया,

करिब भजन तव।

जनम हुइल, पडि मायाजाले,

ना हइल ज्ञान-लव।।३।।

आदरेर छेले, स्वजनेर कोले,

हासिया काटानु काल।।

जनक-जननी, स्नेहेते भुलिया,

संसार लागिल भाल।।४।।

कमे दिने दिने, बालक हइया,

खेलिनु बालक-सह।

आर किछु दिने, ज्ञान उपजिल,

पाठ पडि' अहर्-अहः।।५।।

विद्यार गौरवे, भ्रमि देशे देशे,

धन उपार्जन करि।

स्वजन-पालन, करि एकमने,

भुलिनु तोमारे, हरि।।६।।

वार्द्धक्ये एखन, भकतिविनोद,

काँदिया कातर अति।

ना भजिया तोरे, दिन वृथा गेल,

एखन कि हबे गति।।७।।

१. हे भगवन्! आपको भूलकर मैं इस भौतिक संसार में आया हूँ, जहाँ मैं नाना प्रकार के दुःख भोग रहा हूँ। अब आपके चरणों में आकर मैं अपने दुःखों की कहानी आपके समक्ष रखता हूँ।

२. जब मैं अपनी माता के गर्भ में कैदी था तो उस समय हे भगवन् आपने मुझे अपना दर्शन दिया था । कुछ क्षणों के दर्शन के पश्चात् आपने इस दास को त्याग दिया।

३. उस समय मैंने निश्चय किया, “जन्म लेने के बाद मैं आपका भजन करूंगा।” किन्तु हाय! जन्म लेने के बाद मैं इस संसार के मायाजाल में गिर गया और इस प्रकार अब मेरे पास सच्चे ज्ञान की एक बूंद भी नहीं है।

४. अपने सम्बन्धियों की गोद में हँसते-खेलते मेरा समय बीत गया। माता-पिता के स्नेह के कारण मैं आपको और अधिक भूलता गया और मुझे यह संसार अच्छा लगने लगा ।

५. समय बीतने पर मैं थोड़ा बड़ा हुआ और अपने मित्रों के साथ खेलने लगा। और कुछ समय बीतने पर मुझमें ज्ञान जन्म लेने लगा और इसलिए मैं दिन-रात अपनी पुस्तकों के अध्ययन में डूब गया ।

६. अर्जित विद्या के घमण्ड में मैं देश-विदेश भ्रमण करता हुआ धन अर्जित करने लगा। इस प्रकार एकाग्र मन से अपने परिवार के भरण-पोषण में मग्न होकर हे हरि! मैं आपको भूल गया।

७. अब वृद्धावस्था में यह भक्तिविनोद कातर भाव से रो रहा है। मैं आपका भजन नहीं कर पाया और वृथा ही अपना समय आँवा दिया। हे भगवन्! अब मेरी क्या गति होगी?

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