भाले गोरा गदाधरेर आरती

भाले गोरा गदाधरेर आरती

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श्री गौर गोविंद मंगलारती

भाले गोरा गदाधरेर आरती नेहारि ।

नदीया पूरब भावे जाँउ बलिहारी ।।१।।

कल्पतरुतले रन्तसिंहासनोपरि ।

सबु सखी वेष्टित किशोर-किशोरी ।।२।।

पुरट जडित कत मणि गजमति ।

झमकि झमकि लभे प्रति अंग ज्योति ।।३।।

नील नीरद लागि विद्युत माला।

दुहु अङ्ग मिलि शोभा भुवन उजाला ।।४।।

शंख बाजे, घंटा बाजे, बाजे करताल ।

मधुर मृदंग बाजे, परम रसाल ।।५।।

विशाखादि सखीवृन्द दुहुँ गुण गाओये ।

प्रियनर्मसखीगण चामर दुलाओये ।।६।।

अनंगमञ्जरी, चुया चन्दन देओये ।

मालतीर माला रूपमञ्जरी लागाओये ।।७।।

पंच प्रदीप धरि कर्पूर बाति ।

ललितासुन्दरी करे युगल आरती ।।८।।

देवी लक्ष्मी श्रुतिगण धरणी लोटाओये ।

गोपीजन अधिकार ओयत गाओये ।।९।।

भक्तिविनोद रहि सुरभिकि कुंजे ।

आरती दशने प्रेम सुख भुंजे ।।१०।।

।।१।। जैसे की मैं आश्चर्य होकर श्री श्री गौर एवं श्रील गदाधर की आरती का अनुपम दृश्य का दर्शन करता हूँ, मैं उनके उस मनोभाव में लीन हो जाता हूँ, जब वे नदीया धाम में अवतीर्ण हो गये (उनके वृन्दावन लीला करने के लिए श्री श्री राधारानी एवं श्रीकृष्ण के रूप में) यह अवर्णनीय है।

।।२।। एक कल्पतरु के नीचे, एक बहुमूल्य रत्नों से बनाई गई सिंहासन पर आरुढ है, सदा शाश्वत उस युवक-युवती की जोड़ी जिनके नाम हैं किशोर एवं किशोरी, उनके अत्यन्त प्रिय सभी गोपिओं से घिरे हुए है।

।।३।। श्री राधिका एवं भगवान गोविन्दजी बहुमूल्य रत्नों द्वारा मोतिओं से जड़ा हुआ स्वर्ण निर्मीत सुन्दर शिल्पकला के अतिसुन्दर आभूषणों से श्रृंगार किए हुए है, उनके दिव्य अंगों की उज्वलता और भी बढ़ रही है।

।।४।। उन युगलों के मिलन से उनके शारीरिक अंगों से निकलती हुई अपूर्व लालिमा सम्पूर्ण जगत को उज्वल ज्योति बिखर रही है। अथवा यह भी कहा जा सकता है की जैसे एक विद्युत का हार (श्रीमती राधारानी) एक अतिसुन्दर घने नीले बादल पर (श्रीकृष्ण) पर जुडी हुई है।

।।५।। उन युगलों के मिलन के शुभ अवसर पर एक अदभुत सुन्दर परम पवित्रमय अवसर होने के नाते शंखनाद, घण्टाध्वनि, करताल के मधुर आवाज एवं मृदंग की मधुर आवाज के द्वारा पेश किया जा रहा है। ऐसा सर्वोत्तम कीर्तन अत्यन्त सुमधुर एवं श्रवण करने से परमप्रिय लगता है।

।।६।। वृन्दावन की गोपियाँ, विशाखा देवी के नेतृत्व मे दिव्य युगल की स्तुतियाँ गा रहे है। जब प्रियनर्म सखियाँ उन दिव्य युगलों के आराम के लिए चामर हिलाकर हवा कर रहे है।

।।७।। अनंग मंजरी उन्हे चन्दन का लेप लगा रही है, चुया भी उसमे मिश्रित है जब की रूप मंजरी उनके परमदिव्य कण्ठ को जुही के फूलों के हार से सजा रही है।

।।८।। सुन्दरी ललिता सखी पाँच सलाह की दिया प्रज्वलित कर उन दिव्य युगल की आरती उतार रही है जिसमे कपुर मिश्रित है।

।।९।। पार्वती, लक्ष्मी एवं सभी वेद विशेषज्ञों परमानन्द का अनुभव कर रहे है अतः वे जमीन पर लोटपोट हो रहे है एवं वृन्दावन की गोपिओं के सौभाग्य को निहारते हुए उनकी स्तुति गायन कर रहे है।

।।१०।। भक्तिविनोद सुरभि कुञ्ज में निवास करते हैं जो गोद्रुम द्वीप में है, इस अनुपम आरती का दर्शन कर के दिव्य प्रेम के आनन्द का अनुभव कर रहे हैं एवं परमानन्द मे लीन हो रहा हैं।

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