आत्मनिवेदन, तुया पदे

आत्मनिवेदन, तुया पदे

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आत्मनिवेदन, तुया पदे

आत्मनिवेदन, तुया पदे करि, हुइनु परम सुखी ।

दुःख दूरे गेल, चिन्ता ना रहिल, चौदिके आनन्द देखि ।।१।।

अशोक-अभय, अमृत-आधार, तोमार चरणद्वय ।

ताहाते एखन, विश्राम लाभिया, छाडिनु भवेर भय ।।२।।

तोमार संसारे, करिव सेवन, नहिव फलेर भागी ।

तव सुख याहे, करिव यतन, ह ये पदे अनुरागी ।।३।।

तोमार सेवाय, दुःख हय यत, सेओ त परम सुख ।

सेवा-सुख-दुखःख, परम सम्पद, नाशये अविद्या-दुःख ।।४।।

पूर्व इतिहास, भुलिनु सकल, सेवा-सुख-पेये मने ।

आमि त तोमार, तुमि त आमार, कि काज अपर धने ।।५।।

भक्तिविनोद, आनन्दे डुबिया, तोमार सेवार तरे

सब चेष्टा करे, तव इच्छा-मत, थाकिया तोमार घरे ।।६।।

।।१।। आपके चरणकमलों में अपने को पूर्णतया शरणागत करके, मैं सुखी हो गया हैं। अब मेरा भौतिक क्लेश दूर हो चुका है, अतः मैं समस्त व्याकुलताओं से मुक्त हूँ। चारों दिशाओं में जहाँ भी मैं देखता हूँ, मुझे प्रसन्नता ही प्रसन्नता दिखाई देती है।

।।२।। आपके यह दो चरण-कमल शोक तथा भय से मुक्ति दिलाते हैं। ये दिव्य अमृत के कुण्ड़ हैं। मैंने उन चरणकमलों की शरण ग्रहण कर ली है तथा भौतिक जीवन के समस्त भय को छोड़ दिया है।

।।३।। मैं एकमात्र आपकी सेवा में व्यस्त रहूँगा तथा बदले में कभी भी कुछ नहीं माँगूगा। आपके चरणकमलों से अनुराग रखते हुए, मैं आपको सुख देने का अपनी ओर से श्रेष्ठतम प्रयास करूंगा।।

।।४।। आपकी सेवा सम्पादन करते हुए जो कुछ भी कठिनाइयाँ मुझे मिलेंगी, वे वास्तव में महान् आनन्द का कारण होंगी। आपकी सेवा में वचनबद्धता के दौरान जो भी सुख तथा दुःख मिलता हैं, वह महान् संपत्ति है। वास्तव में ऐसे सुख एवं दुःख अज्ञानजनित क्लेशों को नष्ट कर देते हैं।

।।५।। आपकी सेवा में आने वाले आनन्द का अनुभव करने के पश्चात् मैं अपना पूर्व इतिहास (जीवन) भूल गया हूँ। मैं आपका दास हूँ तथा आप मेरे स्वामी हैं। किसी दुसरी संपत्ति की लालसा रखने से क्या लाभ?

।।६।। आपकी सेवा में तत्पर रहते हुए, भक्तिविनोद ठाकूर आनन्द रूपी समुद्र में डूब रहे हैं। आपकी प्रसन्नता हेतु, वे आपके परिवार में रह रहे हैं एवं सब प्रकार से आपकी सेवा में व्यस्त हैं।

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