आमि त दुर्जन

आमि त दुर्जन

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आमि त दुर्जन

आमि त दुर्जन अति सदा दुराचार!

कोटी-कोटी जन्मे मोर नाहिक उद्धार ||१||

ए-हेन दयालु केबा ए-जगते आछे।।

ए-मत पामरे उद्धारिया लबे काछे? ||२||

शुनियाछि, श्रीचैतन्य पतित पावन।

अनन्त पातकी जने करिला मोचन ||३||

ए-मत दयार सिन्धु कृपा वितरिया।

कबे उद्घारिबे मोरे श्रीचरण दिया ||४||

यदि ए पामार-जने करिबे उद्धार ।।५।।

कर्म नाइ, ज्ञान नाइ कृष्ण भक्ति नाई।

तबे बल किपे ओ श्रीचरण पाइ ।।६।।

भरसा आमार मात्र करुणा तोमार।।

अहेतुकी से करुणा वेदेर विचार ।।७।।

तुमि त पवित्र पढ, आमि दुराशय।

केमने तोमार पढे पाइब आश्रय? ||८||

काँदिया-काँदिया ब ले ए पतित छार

पतितपावन नाम प्रसिद्ध तोमार ||९||

मैं सर्वाधिक पापी तथा अत्यन्त दुराचारी हूँ। कोटि-कोटि जन्मों में भी मेरा उद्धार संभव नहीं है। ||१||

इस संसार में आपसे आधिक दयालु और कौन है? कृपया इस पापी का उद्धार कीजिए तथा अपने चरणकमलों के निकट स्थान दीजिए। ||२||

मैंने सुना है कि श्री चैतन्य महाप्रभु पतितात्माओं के उद्धारक हैं। उन्होंने असंख्य पापियों का उद्धार किया है। ||३||

वे दया के सागर हैं। कब वे मुझपर कृपा करेंगे तथा अपने चरणकमलों की सेवा देकर मेरा उद्धार करेंगे?

एइबार बुझा या बे करुणा तोमार। ||४||

पतितात्माओं के प्रति आपकी करुणा का प्रदर्शन मुझ जैसे पापी का उद्धार करके ही हो सकता है। ।।५।।

मैने न तो पुण्य कार्य किए हैं तथा मेरे पास आध्यात्मिक ज्ञान का सर्वथा अभाव है, न मर पास कृष्ण-भक्ति है। अतएव, कृपया मुझे बताएँ कि किस प्रकार से मैं आपके चरणकमलों का आश्रय ग्रहण करें। ।।६।।

मेरा एकमात्र भरोसा आपकी करुणा है। यह वेदों का निर्णय है कि आपकी कृपा अहेतुकी है। ।।७।।

आप परम पवित्र हैं तथा मैं सर्वाधिक दुष्ट व्यक्ति हैं। किस विधि से मुझे आपके चरणकमलों का आश्रय प्राप्त होगा? ||८||

यह तुच्छ पतित जीव बारम्बार रोते-रोते उद्धार की आशा कर रहा है क्योंकि आप तो पतितात्माओं के उद्धारक के रूप में विख्यात हैं। ||९||

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